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________________ नीति मीमांसा 477 100. सत्तविहे विणए पण्णत्ते, तं जहा - णाणविणए । दंसणविणए, चरित्तविणए मणविणए, वइविणए, कायविणाए, लोगोवयारविणए ॥ - स्थानांगसूत्र, स्थान 7 सू० 130 101. आयरियमाईए, वेयावच्चम्मि दसविहे । आसेवणं जहाथामं, वेयावच्चं तमाहिंय ॥ ऊ०सू०, 30/33 स्थानांग 465 102. i) ii)परियट्णाय वायण पदिच्छणाणुपेहणाय धम्मकहा। थुदिमंगलसंजुत्तो पंचविहो होइ सज्झाओ ॥ मूलाचार वट्टकेर, गाथा 393 103. अट्टरुवाणि वज्जित्ता, झाएज्जासुसमाहिए । धम्म-सुक्काई झाणाई, झाणं तं तु बुहावए ॥ उ०सू०, 30 / 35 104. सयणासणाठाणे वा, उ भिक्खूण वावरे । कायस्स विउस्सग्गो, छट्ठो सो परिकित्तओ ॥ उ०सू०, 30/36 105. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ ॥ कल्पसूत्र 224, प्र० प्राकृत भारती, जयपुर 106. अंतरा वि य से कप्पइ पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइतं रयणि उवायणावित्तए । कल्पसूत्र, सू० 231, ले. भद्रबाहु, प्र० प्राकृत भारती, जयपुर 107. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहु, सू० 232-233 108. वासावासं पज्जोववियाणं नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीणा वा हट्ठाणं आरोग्गाणं वलियसरीराणं इमाओ नव रसविगईओ अभिक्खणं 2 आहारित्तए तंजहा खीरं, दहिं, नवणीयं, सप्पिं, तिल्लं, गुडं, महुं, मज्जं, मंसं । वही - 237 109. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहु, सू० 263-265 110. वही, 284 111. i) दशवैकालिक, हरिभद्रीय वृत्ति, पृ० 28-29 ii)नैः सङ्कयाडयाचनाडहिंसादुःखभ्यासाय नाग्न्यवत् । हस्तेनोत्पाटनं श्मश्रुमूर्धजानां यतेर्मतम् ॥ अनगार धर्मामृत, पं० आशाधरजी 9/97 112. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहु, सू० 285-286 113. दुविहोजिणेहिं कहिओ जिणकप्पो तह य थविरकप्पोय। सो जिणकप्पो उत्तो उत्तम संहणण धारिस्स ॥ - भावसंग्रह, देवसेनाचार्य, गा० 19 थविर कप्पो वि कहिओ अणयाराणं जिणेण सो एसो । पंचच्चेलच्चाओ अकिंचणंत्तं च पडिलिहणं ॥ भावसंग्रह - देवसेनाचार्य, गा० 124 115. तवसुत्तसत्तएगत्तभावसंघडणधिदिसमग्गोय। 114. पविआआगमबलिओ एयविहारी अणुण्णदो ॥ - मूलाचार, समाचाराधिकार, गाथा 194 116. उप्पणम्मिय वाही सिरवेयण कुक्खिवेयणं चेव । आधियासिंति सुधिदिया कायतिगिंछं ण इच्छंति ॥ -मूलाचार, वट्टकेराचार्य, अन भावना०, सू. 841 117. जिणकप्पोऽणुचरिज्जइ नोच्छिन्नोत्ति भणिए पुणो भणइ । तदसत्तस्सोच्छिज्जर वुच्छिज्जइ किं समत्थस्स ? - विशेषावश्यक भाष्य, भाग-2, गा० 2554, प्र० दिव्य दर्शन ट्रस्ट, मुंबई ।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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