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________________ 440 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन भूमि में बने मकान, शून्यगृह, पहाड़, गुफा आदि स्थान जहाँ गृहस्थ नहीं रहते हों, वहाँ साधु ठहर सकता है। साधु के निमित्त बनाए मकान में उसे नहीं ठहरना चाहिये। अन्य एषणीय वस्तुएँ : साधु जीवन में आहार, पानी और स्थान के अतिरिक्त अन्य वस्तएँ भी उपयोगी होती है, जो मुख्यतः निम्नलिखित हैं : 1. रजोहरण : स्थान साफ करने का साधन है। 2. मुख-वस्त्रिका : बीस अंगुल लम्बे और सोलह अंगुल चौडे वस्त्र को आठ पुट करके मुँह पर लगाया जाता है। इससे वाणी के पुद्गलों द्वारा तथा उष्ण वायु से होने वाली वायुकाय की हिंसा का बचाव होता है। 3. चोल पट्टक 4. आहारादि के लिए पात्र 5. वस्त्र 6. कम्बल 7. आसन 8. पाद पोंछना 9. शय्या (स्थान) 10. संथारा (बिछाने का गर्म कपड़ा) 11. पीठ बाजौट 12. फलक बड़ा सोने के काम आने वाला पाट। 13. पात्र बंध 14. पात्र के नीचे बिछाने का वस्त्र 15. पात्र केसरिका (प्रमार्जनी) 16. पटल-पात्र ढकने वाला वस्त्र 17. गोरछक - पात्र साफ करने का वस्त्र 18. रजास्त्राण [पात्र लपेटने वाला वस्त्र] 19. दंड - वृद्धावस्था या आसक्ति में सहारे हेतु। 20. लघुनीति परठने का पात्र शौचादि के प्रयोग का पात्र जो साधु जितनी कम सामग्री अपने साथ रखता है, वह उतना ही निर्मल चरित्र वाला साधु माना जाता है। ___4. आदान-निक्षेप समिति : आदान निक्षेप समिति के अन्तर्गत ओघ उपधि और औपग्रहिक उपधि, इन दोनों प्रकार की उपधि तथा भंडोपकरण को ग्रहण करता हुआ और रखता हुआ, मुनि इस विधि का प्रयोग करे। समितिवन्त साधु सदैव, यतनापूर्वक, आँखों से देखकर और प्रमार्जन करके, दोनों प्रकार की उपधि को ग्रहण करे, तथा रखे। जो सदैव रखी जाती है, वह ओघ उपधि कहलाती है। जैसे
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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