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________________ 8. कांजी के बर्तनों को धोया पानी या छाछ के ऊपर का पानी । 9. इमली का पानी । 10. आम का पानी । 11. अम्बाडक का पानी। 12. बिजोरे का पानी । 13. दाख का पानी । 14. कबीट का पानी । 15. अनारों का पानी । 16. खजूर का पानी । 17. नारियल का पानी। नीति मीमांसा 439 18. कैर का धोया पानी। 19. बैर का धोवन । 20. आँवले का धोवन । 21. गरम पानी तथा अन्य इसी प्रकार का पानी व गुड़ के घड़े को धोया पानी ग्रहण करने योग्य बताया गया है। " वस्त्रैषणा : वस्त्रैषणा के अन्तर्गत साधु को ध्यान रखना होता है, कि वह कैसा वस्त्र धारण व ग्रहण कर सकता है। साधु 1. ऊन का, 2. रेशम का, 3. सन् का, 4. ताड़पत्र का बना, 5. कपास का बना वस्त्र पहन सकता है। केवल श्वेत वस्त्र ही पहन सकता है। साधु को सुन्दरता के लिए न वस्त्र को धोना चाहिये न रंगना चाहिये। जीवों की उत्पत्ति को रोकने के लिए वस्त्रों को धोना चाहिये व प्रासुक व निर्दोष (जीव रहित) भूमि पर सुखाना चाहिये । साधु के लिए कम से कम वस्त्र रखने का विधान है । जो साधु बलिष्ठ हों, उन्हें एक ही वस्त्र रखना चाहिये । शारीरिक स्थिति के अनुसार अधिक भी रख सकते हैं। साध्वियों के लिए चार वस्त्रों का विधान है । साधु को 72 हाथ वस्त्र व साध्वी को 96 हाथ वस्त्र रखने का नियम है। दिगम्बर साधु वस्त्र नहीं रखते, साध्वियाँ रखती है। पात्रेषणा : साधु को तीन प्रकार के पात्र रखने की अनुमति है 1. तुम् पात्र, 2. काष्ठ का पात्र, 3. मिट्टी का पात्र । " शय्यैषणा : जैन साधु बिहारी ( चलने वाला) होता है। चौमासे के चार महीने के अतिरिक्त वह एक स्थान पर अधिक समय नहीं ठहरते हैं । साधु को कैसे स्थान में ठहरना चाहिये । किस प्रकार आज्ञा लेनी चाहिये आदि नियम शय्यैषणा में आते हैं । आचारांग सूत्र में उल्लेख है, कि धर्मशाला, लुहार की कर्मशाला, देवकुल, सभाएँ, प्याऊ, दुकान, गोदाम, पान शालाएँ, चूना बनाने का स्थान, कारखाने, श्मशान
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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