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________________ नीति मीमांसा* 435 एवं असंदिग्ध भाषण करना भाषा समिति है। साधु को क्या बोलना चाहिये, क्या नहीं बोलना चाहिये यह भाषा समिति के अन्तर्गत आता है। उत्तराध्ययन सूत्र में भाषा समिति के विषय में कहा है - क्रोध, मान, माया और लोभ, हास्य, मन मखौर्य (वाचालता) और विकथाओं में उदासीन रहना, इन आठ स्थानों को त्याग कर, बुद्धिमान साधु समय पर निरवद्य और परिमित भाषा बोले अर्थात् उपरोक्त क्रोधादि दोषों को छोडकर समय पर हित-मित और पाप रहित निर्दोष भाषा बोले। साधु को चाहिये, कि वह सदा अतिशय शान्त और वाचालता रहित, कम बोलने वाला हो तथा आचार्यादि के समीप मोक्ष अर्थ वाले आगमों को सीखे और निरर्थक मोक्ष अर्थ से रहित ज्योतिष, वैद्यक तथा स्त्री कथादि का त्याग करे। स्थानांग सूत्र में प्रतिमाधारी अनगार को चार भाषाओं का प्रयोग कल्पता है, ऐसा उल्लेख है। 1. याचनी भाषा : वस्त्र पात्रादि की याचना के लिए बोलना। 2. प्रच्छनी भाषा : सूत्र का अर्थ और मार्ग आदि पूछने के लिए बोलना। 3. अनुज्ञापनी भाषा : स्थान आदि की आज्ञा लेने के लिए बोलना। 4. प्रश्रव्याकरणी भाषा : पूछे गये प्रश्न का उत्तर देने के लिए बोलना। भाषा चार प्रकार की कही गई है - 1. सत्य भाषा : यथार्थ बोलना। 2. मृषा भाषा : अयथार्थ या असत्य मिश्रित बोलना। 3. सत्य-मृषा भाषा : सत्य-असत्य मिश्रित भाषा बोलना। 4. असत्या मृषा भाषा : व्यवहार भाषा बोलना (जिसमें सत्य-असत्य का व्यवहार न हो।) इस प्रकार साधु को मधुर, हितकारी, परिमित, प्रयोजन योग्य, गर्व रहित, तुच्छ न हो, बुद्धि से विचार कर वचन बोलने चाहिये। 3. एषणा समिति : एषणा समिति में साधु को भिक्षा किस प्रकार ग्रहण करनी चाहिये, इसका विवेचन है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है - आहार, उपधि और शय्या की, गवेषणैसणा और ग्रहणैषणा तथा परिभोगैषणा ये प्रत्येक की, जो तीन-तीन एषणाएँ हैं, उनकी विशुद्धि को अर्थात् गवेषण, ग्रहण और ग्रास (परिभोग) सम्बन्धी दोषों से अदूषित अतएव विशुद्ध आहार, पानी, रजोहरण, मुखवस्त्रिका आदि उपधि और शय्या, पाट, पाटलादि का ग्रहण करना एषणा समिति है।' इस प्रकार एषणा समिति के तीन भेद हैं : 1. गवेषणा : साधु के लिए मधुकरी (भिक्षा) वृत्ति का प्रतिपादन किया गया है। जिस प्रकार फूलों में भ्रमर अपना निर्वाह करते हैं, उसी प्रकार साधु ग्रहस्थों द्वारा स्वयं के लिए बनाए हुए आहारादि की भिक्षा ग्रहण करेंगे, जिससे किसी जीव को कष्ट न हो। भिक्षा के लिए निकलने पर आहार के निर्णय के लिए जिन नियमों का
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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