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________________ 428 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन दोषों को टालकर निर्मल सम्यक्त्व का पालन करे। साधु चरित्र सम्पन्न भी हो अर्थात् सामायिक छेदोपस्थापना, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म सम्पराय और यथाख्यात चरित्र में से यथासंभव को धारण करे। (इस काल में प्रथम दो चारित्र ही पाले जा सकते हैं।) खंती - क्षमायुक्त हो। संवेग - सदा वैराग्यवान हो। संसार के समस्त संयोगों को इन्द्रजाल के समान कल्पित और स्वप्न के समान क्षणिक समझकर संसार से भयभीत रहना संवेग कहलाता है। वेयणसमहि आसाणिया - क्षुधा, तृष्णा आदि 22 परिषह उत्पन्न हों, तो समभाव से उन्हें सहन करना। मरणंतियसमहि आसणिया अर्थात् मारणान्तिक कष्ट आने पर भी और मृत्यु के अवसर पर तनिक भी भयभीत न होना। वरन् समाधिमरण से आयु पूर्ण करना। ये हैं - साधु के 27 गुण। दिगम्बर ग्रंथ मूलाचार में मुनि के 28 गुण बताए गए हैं - "पंचय महत्वयाइं समिदीओ पंच जिणवरोदिट्ठा। पंचेविंदियरोहा छप्पि य आवासया लोओ।। 2 ।। आच्चेल कमण्हाणं खिदिसयणमदंतघंसणं चेव। ठिदिभोयणेभत्तं मूल गुणा अट्ठवीसा दु॥ 3 ॥123 अर्थात् पाँच महाव्रत (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह), जिनवर कर उपदेशी हुई पाँच समितियाँ (ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदाननिक्षेपण समिति, मूत्र विष्ठादिक का शुद्ध भूमि में क्षेपण अर्थात् प्रतिष्ठापन समिति) पाँच इन्द्रियों का निरोध (चक्षु, कान, नाक, जीभ, स्पर्शन) इन पाँच इन्द्रियों के विषयों का निरोध करना। छह आवश्यक (सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग), लोच, आचेलक्य, अस्नान, पृथ्वीशयन, अदंतघर्षण, स्थिति भोजन, एक भुक्ति-ये जैन साधुओं के अट्ठाईस मूल गुण हैं। उपर्युक्त मूल अट्ठाईस गुण ऐसे व्यवस्थित नियम हैं, जो मुमुक्षु को निर्विकारी और योगी बना देते हैं। यह मुनि दशा ही साक्षात् मोक्ष का कारण है। इन गुणों के अभाव में कोई जैन साधु नहीं हो सकता। जैन मुनि के आचार्य, उपाध्याय और साधु रूप तीन भेदों के अनुसार उनके कर्तव्य में भेद हैं। 1. आचार्य : साधु के गुणों के अतिरिक्त सर्वकाल सम्बन्धी आचार को जानकर स्वयं तद्वत् आचरण करे तथा दूसरों से करावे, जैन धर्म का उपदेश देकर मुमुक्षुओं का संग्रह करे और उनकी सार-संभाल रखे।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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