SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीति मीमांसा * 421 निर्वाण के पश्चात् श्रमण संस्कृति दो उपधाराओं में विभाजित हो गई - जैन तथा बौद्ध। इस प्रकार भारतीय संस्कृति की तीन धाराएँ हो गई - 1. जैन संस्कृति, 2. बौद्ध संस्कृति और 3. वैदिक संस्कृति। चूंकि बौद्ध संस्कृति नवीन है, अतः नीतिशास्त्र का उद्गम हमें दो ही संस्कृतियों में जानना है- 1. वैदिक संस्कृति तथा 2. जैन संस्कृति। 1. वैदिक संस्कृति : वैदिक संस्कृति का आदि ग्रन्थ ऋग्वेद है। वहीं से वैदिक परम्परा का ज्ञान प्रारम्भ होता है। इसके अतिरिक्त यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद ये तीन वेद और है। वेद प्रमुख रूप से प्रार्थना ग्रन्थ है। ऐसे मन्त्र बहुत कम हैं, जिनका नीति से सीधा सम्बन्ध जोड़ा जा सके। फिर भी कुछ मंत्र मिल जाते हैं, जैसे “मैं झूठ से सत्य की ओर जाता हूँ। वेदों के पश्चात् वैदिक परम्परा में ब्राह्मण और उपनिषद् प्रमुख ग्रन्थ माने जाते हैं। उपनिषदों में नीति संबंधी अनेक सूत्र मिलते हैं। पश्चात्वर्ती साहित्य में स्मृतियों में आचार, व्यवहार और प्रायश्चित का वर्णन है। यद्यपि 18 स्मृतियाँ हैं, लेकिन उनमें प्रमुख हैं मनुस्मृ एवं द्वितीय स्थान है याज्ञवल्क्य स्मृति का। नारी की गरीमा को प्रकट करते हुए मनुस्मृति में कहा है -- “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।" अर्थात् जिस कुल में स्त्रियों का सम्मान होता है, वहाँ देवताओं का निवास रहता है। इसी प्रकार राजा के कर्तव्यों के सन्दर्भ में राजनीति कूटनीति का वर्णन है - ___ "बकवच्चिन्तयेदर्थान्,सिंहवच्च पराक्रमेत। वृकवाच्चावलुम्प्येत शशवच्च विनिष्पतेत्॥" अर्थात् राजा का कर्तव्य है, कि बगुले के समान शत्रु का धन लेने की चिन्ता करे, सिंह के समान पराक्रमी बने, भेड़िये के समान अवसर देखकर शत्रु को मारे और (विपरीत) अवसर होने पर खरगोश की तरह चुपचाप निकल जाए। इनके पश्चात् रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों और पुराणों में भी नीति संबंधी अनेक सूक्त मिलते हैं। आदर्श पुत्र, आदर्श पत्नी, आदर्श भाई, आदर्श सेवक, आदर्श राज्य आदि का सुन्दर वर्णन मिलता है। महावीर के पश्चात् काल में तो अनेक नीति ग्रंथों की पृथक् से रचना हुई है। जैसे-शुक्रनीति, विदुरनीति आदि। इस प्रकार वैदिक नीतिशास्त्र का उद्गम भी काफी प्राचीन है। लेकिन जैन नीति व्यवस्था उससे भी पूर्व अधिक व्यवस्थित एवं विकसित रूप में विद्यमान थी।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy