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________________ 420 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन इसलिए निर्णय के आधारभूत तत्त्वों और मानदण्डों का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इस ज्ञान से उसकी निर्णय क्षमता जागृत होती है और बढ़ती है। इस प्रक्रिया में नीतिशास्त्र का अध्ययन बहुत ही लाभप्रद और उपयोगी है। यह मनुष्य को सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। जो मनुष्य सही समय पर सही निर्णय लेकर और उसे सही ढंग से अमल में ले आते हैं। वे जीवन यात्रा में सफल होते हैं, उनका जीवन यशस्वी होता है। वस्तुतः नीतिशास्त्र एक विचारशीलता है, पारस्परिक व्यवहारों का आधार है। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय जीवन में जो परस्पर व्यवहार होते हैं, उनके कुछ निश्चित मानदण्ड होते हैं। उन मानदण्डों के आधार पर ही उचित-अनुचित का निर्णय एवं करणीय कार्यों का भी निश्चय होता है। इन मानदण्डों को निश्चित करने का कार्य नीतिशास्त्र करता है। अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिए नीतिशास्त्र का ज्ञान अनिवार्य है। नीतिशास्त्र का उद्गम एवं विकास : इस धरा पर नीतिशास्त्र के उद्गम और विकास को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं- 1. पाश्चात्य नीतिशास्त्र और 2. भारतीय नीतिशास्त्र। ____ 1. पाश्चात्य नीतिशास्त्र : पाश्चात्य नीतिशास्त्र का उद्गम सुकरात से माना जाता है। इनका समय ईसा पूर्व छठी शताब्दी का है। अपने नैतिक विचारों का प्रसार करने पर उन्हें मृत्युदण्ड दिया गया। अपने अन्तिम समय में सुकरात ने अपने मित्र क्राइष्टो को तीन सिद्धान्त दिए - 1. किसी को हानि न पहुँचाना। 2. अपने वायदों का पालन करना। 3. माता-पिता तथा शिक्षकों का सम्मान करना। इन तीन सिद्धान्तों को ही पाश्चात्य नीतिशास्त्र का आधार कहा जा सकता है। उसके पश्चात प्लेटो ने नीति को समाज का समन्वयकारी तत्त्व या विधि स्वीकार किया तथा नीति के साथ न्याय को भी परिभाषित किया। तदुपरान्त ईसा की सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी के पश्चात् शॉपेनहावर, कांट, स्पिनोजा आदि ने नीति सम्बन्धी सिद्धांत दिए। इस ऐतिहासिक विवेचन से स्पष्ट है, कि पाश्चात्य नीतिशास्त्र का जितना भी विकास दिखाई देता है, वह सब आधुनिक काल में ही हुआ है, उसका कोई विशेष सुदृढ़ प्राचीन आधार दृष्टिगोचर नहीं होता। 2. भारतीय नीतिशास्त्र : प्राचीनकाल से ही भारत में संस्कृति की दो धाराएँ चली आ रही है - 1. श्रमण संस्कृति तथा 2. वैदिक संस्कृति। भगवान पार्श्वनाथ के
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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