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________________ 38 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन माताएँ इसी प्रकार से 14 स्वप्न देखती हैं। माता मरुदेवी ने प्रथम स्वप्न वृषभ देखा, इसीलिए भगवान का नाम वृषभदेव या ऋषभदेव रखा गया। जैन आगमों के अनुसार सभी तीर्थंकरों के जन्म के पश्चात मेरु पर्वत पर 64 इन्द्रों व 56 दिक्कमारियों द्वा तीर्थंकर भगवान का क्षीर सागर के जल से महाभिषेक किया जाता है। देव माता को माया-निद्रा में सुलाकर नवजात बालक को अभिषेक के लिए ले जाते हैं तथा अभिषेक के पश्चात् पुनः माता के पास लाकर सुला देते हैं। अतः ऐसा ही अभिषेक भगवान ऋषभदेव तथा अन्य सभी तीर्थंकरों का हुआ था। आहार : भगवान ऋषभदेव के आहार के सम्बन्ध में उल्लेख मिलता है, कि तीर्थंकर स्तनपान नहीं करते थे। देवों ने प्रभु के जन्म ग्रहण करते ही उनके दाहिने अंगूठे में अमृत का संचरण कर दिया। अतः जब भी उन्हें आहार की इच्छा होती, वे अपना अंगूठा मुँह में रख लेते और उसी से नानाविध पौष्टिक रस ग्रहण करते थे। वंश तथा गौत्र स्थापना : भगवान ऋषभदेव के समय तक समाज में वंश, गौत्र आदि कुछ भी नहीं थे। ऋषभदेव जी जब 1 वर्ष के हुए, तब एक दिन शकेन्द्र विविध खाद्य-पदार्थों का सजा थाल लेकर उनके समक्ष प्रस्तत हए तब ऋषभदेव जी ने उनमें से एक इक्षु का टुकड़ा उठाया। प्रभु की इक्षुभक्षण की रुचि जानकर त्रैलोक्य प्रदीप्त प्रभु ऋषभ के वंश का नाम इक्ष्वाकुवंश रखा गया। इक्षु के काटने से रस का स्राव होता है, अतः उनको 'काश्यप' गौत्रिय कहा गया। विवाह पद्धति का प्रारम्भ : युगलिया संस्कृति में विवाह से लोग अपरिचित थे। युगलिक रूप से ही जन्म होता था और बड़े होकर वे पति-पत्नी की तरह रहते थे। भगवान ऋषभदेव जब छोटे थे, तब एक युगल जोड़े में से लड़के की अकाल मृत्यु हो गई। ऐसा पहली बार हुआ था। अतः लोग विस्मित हो गये और उस अकेली लड़की को वे नाभिराजा के पास ले गये। तब नाभिराजा के यहीं ऋषभदेव के साथ ही उसका लालन पालन हुआ। कालान्तर में युवा होने पर उसका ऋषभदेव के साथ ही विवाह करके सर्वप्रथम विवाह पद्धति का प्रारम्भ किया गया, अतः ऋषभदेव जी के दो पत्नियाँ थी। एक उनके साथ युगलिक रूप से जन्मी-सुनन्दा तथा दूसरी जिसके साथ उनका विवाह कर दिया गया, सुमंगला। ऋषभदेव जी की सन्तति : ऋषभदेव जी की आयु 6 लाख पूर्व की हुई तब देवी सुमंगला ने भरत और ब्राह्मी को युगलिक रूप से जन्म दिया। थोड़ी देर बाद ही देवी सुनन्दा ने बाहुबली तथा सुन्दरी को युगलिक रूप से जन्म दिया। कालान्तर में देवी सुमंगला ने 49 पुत्र युगलों को जन्म दिया। इस प्रकार देवी सुमंगला 99 पुत्रों और एक पुत्री की तथा देवी सुनन्दा एक पुत्र व एक पुत्री की माता बनी। इस प्रकार ऋषभदेवजी के 100 पुत्र तथा 2 पुत्रीयाँ थी।” ये सभी सर्वांगसुन्दर, शुभ लक्षणों तथा उत्तम गुणों से युक्त थे।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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