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________________ 370 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन आकाश अनन्त : जैन दर्शन की आकाश द्रव्य की अवधारण भी विज्ञान सम्मत है। विज्ञान के अनुसार आकाश (Space) एक शुद्ध द्रव्य है। उसमें न तो वर्ण है, न गंध है, न रस है, न स्पर्श है। जैन दर्शन ने आकाश को दो भागों में विभक्त किया है - लोक- आकाश और अलोक आकाश । लोक आकाश सीमित और सान्त है और अलोक आकाश असीम एवं अनन्त है। गणित-विज्ञान में निष्णात H. Ward भी इस विचार को स्वीकार करते हुए लिखते हैं- " सम्पूर्ण पदार्थ सम्पूर्ण आकाश की एक सीमा में रहते हैं, इसलिए विश्व सान्त है। इससे यह स्वीकार नहीं किया जा सकता, कि जिस सीमा में पदार्थ रहते है, उसके आगे आकाश नहीं है। लेकिन यह सम्पूर्ण आकाश इस प्रकार घुमावदार (कर्वड) है, कि प्रकाश की एक किरण आकाश की एक सीधी रेखा में लम्बे समय तक यात्रा करने के पश्चात् पुनः अपने बिन्दु पर आ जायेगी। गणितज्ञों का अनुमान है, कि प्रकाश की एक किरण को आकाश के इस चक्कर को पूरा करने में दस ट्रिलियन वर्ष से कम नहीं लगते। इससे यह प्रमाणित होता है, कि आकाश ससीम है, सान्त है ।" इसी पुस्तक में वार्ड ने आगे लिखा है, कि यह पूर्णतः अकथनीय, अचिन्तनीय (Inconceiable) है, कि कोई भी खगोल विद्या निपुण व्यक्ति आकाश की सीमा (Boundary of Space) को लांघकर कूद सके और देख सके, कि वहाँ आकाश नहीं है । इसलिए गणितज्ञ यह निश्चय नहीं कर पाये, कि आकाश सान्त है या अनन्त । अर्थात् H. Ward का कहना है, कि जब हम यह कहते हैं, कि (Space is Finite ) तो इसका यह अर्थ नहीं है, कि इस विश्व में जिस सीमित आकाश का हम अनुभव करते हैं, उसके आगे वह है ही नहीं । हम इतना ही कह सकते हैं, कि विश्व की जो सीमा हमें ज्ञात है, उसके आगे आकाश का जो भाग है, वह अज्ञात है । 18 इस सम्बन्ध में आइन्स्टीन के सिद्धान्त को स्वीकार करने वाले महान् वैज्ञानिक प्रो. एजिंगटन " ने लिखा है, कि मैं सोचता हूँ, कि विचारक दो प्रश्नों के साथ आकाश के सम्बन्ध में कल्पना करते है । It there an end to space? क्या आकाश एक अन्त है? If space cames to an end, what is beyond the end ? यदि आकाश का एक अन्त है, तो क्या यह अन्त सीमा में आबद्ध है? इस सम्बन्ध में वैज्ञानिकों की एक मान्यता यह है, कि There is no end but space beyond space for every. आकाश का कोई अन्त नहीं है, आकाश सदैव आकाश की सीमा में आबद्ध है । सापेक्षवाद सिद्धान्त के पूर्व यह मान्यता थी, कि आकाश अनन्त है। लेकिन कोई भी व्यक्ति अनन्त आकाश को प्राप्त नहीं कर पाता । इस भौतिक जगत में हमारा सम्बन्ध सीमित आकाश से ही होता है, अनन्त से नहीं । इस सम्बन्ध में आइन्स्टीन का सिद्धान्त यह है, कि Is space infinite or does it came to an end? क्या आकाश अनन्त है या क्या यह अन्त को प्राप्त होता है? इसका उत्तर उसने
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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