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________________ तत्त्व मीमांसा * 369 लिया है। आइन्स्टीन के पूर्व के वैज्ञानिक गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को सक्रिय साधन मानते थे। इस मान्यता को आइन्स्टीन ने पूर्णतः बदल दिया है। अथवा उसे निष्क्रिय साधन मान लिया है। अब गुरुत्वाकर्षण को पदार्थों के स्थिर होने में सहायक या उपकारी कारण अथवा माध्यम (Aweiliary Cause) मान लिया गया और उसे निष्क्रिय अदृश्य एवं आकार रहित माना। 5. आकाशास्तिकाय : आकाश द्रव्य के अस्तित्व को सभी दार्शनिकों ने स्वीकार किया है। आकाश का लक्षण है - "आकाशस्यावगाह:१० अर्थात् आकाश का लक्षण है, अवगाह प्रदान करना-स्थान देना। इस लोक में समस्त जीवों, पुद्गलों, धर्म, अधर्म तथा काल द्रव्यों को आकाश ही अवगाहन प्रदान करता है। आकाश अखण्ड, निष्क्रिय, चेतना रहित अमूर्तद्रव्य है। आकाश अन्य सब द्रव्यों को आधार प्रदान करता है, लेकिन वह स्वयं स्वप्रतिष्ठ है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा से आकाशास्तिकाय के पाँच भेद हैं। द्रव्य से आकाश एक इकाई है, क्षेत्र से वह लोक-अलोक में सर्वत्र व्याप्त है, काल से आदि अन्त रहित है, भाव से रूप-रस-गन्ध-स्पर्श-वर्ण रहित है और गुण से अवगाहना स्वभाव वाला है अर्थात् अन्य सब द्रव्यों को अवकाश देता है। आकाश के अनन्त प्रदेश हैं। यह सर्वव्यापक है। इसके दो भेद हैं - लोकाकाश और अलोकाकाश। 1. लोकाकाश : अनन्त आकाश के मध्य भाग में चौदह रज्जू ऊँचा पुरुषाकार लोक के, उस क्षेत्र को लोकाकाश कहते हैं। जिस आकाश खण्ड में धर्म-अधर्म, जीव, पुद्गल, काल व आकाश आदि द्रव्य विद्यमान है, वह लोकाकाश कहा जाता है। अस्तिकायों के आधार-आधेय का सम्बन्ध का विचार लोकाकाश को लेकर ही किया गया है। धर्म और अधर्म ये दोनों अस्तिकाय ऐसे अखण्ड स्कन्ध हैं, जो सम्पूर्ण लोकाकाश में स्थित हैं। वस्तुतः अखण्ड आकाश के लोक-अलोक की कल्पना भी धर्म-अधर्म द्रव्यों के सम्बन्ध के कारण ही है। जहाँ धर्म-अधर्म द्रव्यों का सम्बन्ध न हो वहाँ अलोक और जहाँ इनका सम्बन्ध हो वह लोक है। लोकाकाश असंख्यात प्रदेशों में है। 2. अलोकाकाश : अलोकाकाश अनन्त प्रदेशी है। जहाँ केवल आकाश ही आकाश है। अलोकाकाश में अन्य किसी द्रव्य की उपस्थिति नहीं होती। चूँकि धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय लोक तक ही सीमित है। अतः जीव और पुद्गल आदि का भी अलोकाकाश में गमन अथवा स्थिति संभव नहीं है। अर्थात् अलोकाकाश केवल आकाश मात्र है।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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