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________________ 366 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन लगे, कि सूर्य, चन्द्र, ग्रहों एवं तारों के मध्य में जो बहुत लम्बा चौड़ा शून्य क्षेत्र खाली पड़ा है, उसमें से होकर प्रकाश किरणें (Ray of Light) एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी को किस माध्यम (Medium) से पूरा करती है। प्रकाश (Light) भारवान पदार्थ है, अतः यह कदापि संभव नहीं हो सकता, कि बिना किसी माध्यम के वह स्वतः ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँच जाए। इस समस्या के उत्पन्न होने पर माध्यम को ढूँढ निकालने का प्रयास प्रारम्भ हुआ और इस अन्वेषण के परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों ने (Light) प्रकाश की गति में इथर (Ether) को माध्यम स्वीकार किया। जिस प्रकार जैन दर्शन ने गति में धर्मद्रव्य को सहायक माना, उसी प्रकार विज्ञान ने Ether को प्रकाश की गति में माध्यम (Medium of Motion for light) स्वीकार किया है। गति में सहायक होने पर भी जैन दर्शन द्वारा मान्य धर्म और विज्ञान द्वारा स्वीकृत इथर के स्वरूप में कुछ भिन्नता भी है। सर्व प्रथम इथर को वैज्ञानिक अभौतिक नहीं, भौतिक पदार्थ मानते थे। उसमें विशेष प्रकार और परिमाण में लचक एवं घनता भी है। इस लचक एवं घनता का परिणाम भी बताया जाता था, परन्तु वह सन्देह से परे नहीं था। बीसवीं शताब्दी में इस सम्बन्ध में जो वैज्ञानिक अन्वेषण हुए उसने वैज्ञानिकों की पुरानी परिभाषाओं को बदल दिया है। आइन्सटीन के सापेक्षवाद (Theory of relaticity) के अनुसार इथर (Ether) अभौतिक (Non Moterial Non Atomic) है, लोक में व्याप्त है, नहीं देखा जा सकने वाला एक अखण्ड द्रव्य जो अन्य भौतिक द्रव्यों (Material Substance) से भिन्न है। एडविन एडसर (Eduin Edser) ने अपनी पुस्तक Light में लिखा है - इथर किस प्रकार का था? इसके सम्बन्ध में तुरन्त कठिनायाँ परिलक्षित होने लगीं। क्योंकि यह सिद्ध हो चुका था - 1. इथर सब गैसों से पतला है - Tinner than the thinest gas 2. फौलाद से भी अधिक सघन है - More rigid than steel. 3. सर्वत्र नितान्त एक सा है - Absolutely the same every where. 4. भार-शून्य है - Absolutely weightless. 5. किसी पड़ौसी इलेक्ट्रोन के निकट शीशे से भी अधिक भारी है - In the neighbourhood of any electron cmmensely heavier than lead. धर्म द्रव्य और इथर की तुलना करते हुए प्रो. जी.आर. जैन, एम.सी. ने अपनी पुस्तक में लिखा है - ‘यह प्रामाणित हो चुका है, कि जैन दार्शनिक और आधुनिक वैज्ञनिक द्वारा यहाँ तक पूर्णतः एकमत है, कि धर्म द्रव्य या विज्ञान द्वारा मान्य इथर अभौतिक, अपारमाणिक, अविभाज्य, अखण्ड, अरुप, आकाश के समान व्याप्तगति
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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