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________________ 358 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन विभाजित करने वाला है। परमाणु स्कन्ध के भीतर है, किन्तु द्रव्य है। परमाणु के अंश न होने का कथन द्रव्य की अपेक्षा से ही किया गया है। पर्याय रुप में तो उसके भी अंशो की कल्पना की गई है, क्योंकि एक ही परमाणु में वर्ण, रस, गन्ध आदि अनेक पर्याय हैं और वे सभी उस द्रव्य के भावरुप अंश हैं। इसलिए एक परमाणु के भी अनेक भाव परमाणु माने जाते हैं। प्रत्येक परमाणु में स्वभाव से एक रस, एक रुप, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं। लाल, पीला, नीला, सफेद और काला इन पांच रुपों में से कोई एक रुप परमाणु में होता है, जो बदलता भी रहता है। तीता, कडुवा, कषायला, खट्टा, और मीठा इन पाँच रसों में से कोई एक रस परमाणुओं में होता है, जो परिवर्तित भी होता रहता है। सुगन्ध और दुर्गन्ध इन दो गन्धों में से कोई एक गन्ध परमाणु में अवश्य होती है। शीत और उष्ण में से एक, स्निग्ध और रुक्ष में से एक इस प्रकार कोई दो स्पर्श प्रत्येक परमाणु में अवश्य होते है। शेष मृदु, कर्कश, गुरु और लघु ये चार स्पर्श स्कन्ध अवस्था के हैं। परमाणु अवस्था में ये नहीं होते हैं। यह एक प्रदेशी होता है। यह स्कन्धों का कारण भी है और स्कन्धों के भेद से उत्पन्न होने के कारण उनका कार्य भी है। पुद्गल की परमाणु अवस्था स्वाभाविक पर्याय है और स्कन्ध अवस्था विभाव-पर्याय है। परमाणु स्वयं अशब्द होते हुए भी शब्द का कारण है। शब्द स्कन्धों के परस्पर स्पर्श से उत्पन्न होते हैं तथा स्कन्ध परमाणु दल का संघात है। इस प्रकार शब्द पुद्गल स्कन्ध पर्याय के रुप में नियत रूप से उत्पन्न होता है। शब्द की उत्पत्ति आकाश से नहीं होती, अपितु भाषा वर्गणा के स्कन्धों से होती है। आकाश अमूर्त द्रव्य है, अतः उसका गुण भी अमूर्त होना चाहिए। इन्द्रियाँ मूर्त हैं, तथा मूर्त पदार्थों का ही ज्ञान कराने में सक्षम हैं। अतः श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा ग्रहण किया जाने वाला शब्द पुद्गलात्मक सिद्ध होता है। शब्द के दो भेद हैं 1. प्रायोगिक : मनुष्यादि के प्रयोग से उत्पन्न होने वाला शब्द प्रायोगिक है। 2. वैश्रासिक : मेघादि से उत्पन्न होने वाला शब्द वैश्रासिक है। परमाणु दो प्रकार के होते हैं - सूक्ष्म और व्यवहारिक। सूक्ष्म परमाणु स्थाप्य है अर्थात् व्याख्या के अयोग्य। अनन्तानन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदायों के सम्मिलन से एक व्यावहारिक परमाणु होता है। जो तीक्ष्ण से तीक्ष्ण शस्त्र से भी छेदन-भेदन को प्राप्त नहीं होता है, उसे केवलज्ञानियों ने व्यावहारिक परमाणु कहा है। परमाणु द्वयणुक, त्र्यणुक आदि स्कन्धों का कारण होता है, किन्तु उसका कोई कारण नहीं होता। वह सूक्ष्म और नित्य होता है। उसके द्वारा निष्पन्न कार्यों से ही उसकी पहचान होती है। अभव्यराशि से अनन्तगुणा अधिक और सिद्ध राशि से अनन्तवें भाग कम परमाणुओं का जो स्कन्ध बनता है। वही जीव द्वारा ग्रहण करने
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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