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________________ तत्त्व मीमांसा * 357 7. अपर्याप्तक त्रिन्द्रिय 8. पर्याप्तक त्रिन्द्रिय 9. अपर्याप्तक चतुरिन्द्रिय 10. पर्याप्तक चतुरिन्द्रिय 11. असंज्ञी अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय 12. असंज्ञी पर्याप्तक पंचेन्द्रिय 13. संज्ञी अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय 14. संज्ञी पर्याप्तक पंचेन्द्रिय यहाँ यह भी दृष्टव्य है, कि जैन दर्शन जीव बहुत्ववादी है। वह प्रत्येक जीव की स्वतंत्र सत्ता स्वीकार करता है। स्थानांग में कहा गया है, कि प्रत्येक शरीर के अनुसार एक जीव है। जीवों की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को देखकर सांख्य ने भी 'पुरुष' की अनेकता को स्वीकार किया है।" इस प्रकार जीव द्रव्य संसारी और मुक्त दो प्रकारों में विभाजित होकर भी मूल रूप से समान गुण और शक्ति वाला है। 2. पुद्गलास्तिकाय - पुद्गल द्रव्य का सामान्य लक्षण है - रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से युक्त होना। जो द्रव्य स्कंध अवस्था में पूरण अर्थात् अन्य-अन्य परमाणुओं से मिलना और गलन अर्थात् कुछ परमाणुओं का बिछुड़ना, इस तरह उपचय और अपचय को प्राप्त होता है, वह पुद्गल कहलाता है। समस्त दृश्य जगत् इस पुद्गल का ही विस्तार है। मूल दृष्टि से पुद्गल द्रव्य परमाणु रूप ही है। अनेक परमाणुओं से मिलकर जो स्कन्ध बनता है, वह संयुक्त द्रव्य है। स्कन्ध पर्याय स्कन्धान्तर्गत सभी पुद्गल-परमाणुओं की संयुक्त पर्याय है। वे पुद्गल-परमाणु जब तक अपनी बंध शक्ति से शिथिल या निबिड़ रूप में एक-दूसरे से जुटे रहते हैं, तब तक स्कन्ध कहे जाते हैं। इन स्कन्धों का निर्माण और बिखराव परमाणुओं की बंधशक्ति और देशशक्ति के कारण होता है। पुद्गल द्रव्य के चार भेद होते हैं -1. स्कन्ध, 2. स्कन्धदेश, 3. स्कन्ध प्रदेश, 4. परमाणु। पुद्गल पिण्डात्मक सम्पूर्ण वस्तु को स्कन्ध कहते हैं, जो अनन्तानन्त परमाणुओं के संयोग से बनता है। स्कन्ध के आधे को स्कन्ध देश कहते हैं और स्कन्ध देश के आधे को स्कन्ध प्रदेश कहते हैं। इस प्रकार विभाजन करते हुए अंततः जो अविभागी अंश प्राप्त होता है, उसे परमाणु कहते हैं। परमाणु : परमाणु अविभाज्य, एक, शाश्वत, अशब्द, मूर्त रुप से उत्पन्न होने वाला तथा मूर्त स्कन्ध रुप पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु का समान कारण भी है। वह परिणमनशील नित्य स्कन्धों का निर्माण करने वाला है, काल तथा संख्या को
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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