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________________ तत्त्व मीमांसा * 335 वैदिक, बौद्ध और जैन इन तीन मुख्य शाखाओं में समान रीति से विश्व-चिन्तन के साथ ही जीवन-शोधन का चिन्तन संकलित है। पाश्चात्य दर्शन में नीतिदर्शन के अन्तर्गत नैतिक मानदण्डों के आधार पर जीवन शोधन को सम्मिलित किया जाता है। जीवन-शोधन दर्शन का एक अंश मात्र होता है, दर्शन का उद्देश्य अथवा परिणति नहीं। जबकि कोई भी पूर्वी दर्शन ऐसा नहीं, कि जो केवल विश्व चिन्तन करके ही संतोष धारण करता हो । प्रत्येक मुख्य या शाखारुप पूर्वी दर्शन जगत, जीवन और ईश्वर संबंधी अपने विशिष्ट विचार दिखला करके अंत में जीवन-शोधन की प्रक्रिया दिखला कर ही अपने दार्शनिक विवेचन को पूर्ण करता है। तात्पर्य यह है, कि पूर्वी दर्शनों में उनका संपूर्ण दर्शन ही जीवन-शोधन के प्रश्न के गिर्द पल्लवित होता है। इसीलिए हम पूर्वी दर्शनों में प्रत्येक दर्शन के मूल ग्रन्थ में प्रारंभ में मोक्ष का उद्देश्य और अंत में उसका ही उपसंहार देखते हैं। जैसे कि वेदान्तसार में प्रारंभ "अखंडं सच्चिदानन्दमवाङ्मानसगोचरम्, आत्मानमखिलाधारमाश्रये भीष्टसिद्धये।" समाप्ति - “विमुक्तश्च विमुच्यते इत्यादि श्रुतेः'" सांख्यकारिका में - प्रारंभ - “दुःखत्रयाभिधाताज्जिज्ञासा तदपघातके हैतो।" समाप्ति - ऐकान्तिक मात्यन्तमुभयं कैवल्यामाप्नोति। जैन दर्शन में : प्रारंभ - ‘निब्बाण सेट्ठा जह सव्व धम्मा।” सूत्रकृतांग अ6 समाप्ति - 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः।" तत्त्वार्थ 1/1 इस प्रकार समस्त पूर्वी दर्शनों में जीवन शोधन एवं मुक्तिलाभ के लक्ष्य को समान रूप से स्वीकार किया गया है। जबकि पाश्चात्य दर्शनों में आवश्यक रूप से मोक्ष तत्त्व को सम्मिलित नहीं किया गया है। जीवन-शोधन का विचार भी नैतिक दर्शन का अंश मात्र है। पूर्वी दर्शनों की भाँति वहाँ संपूर्ण दर्शन अर्थात तत्त्वज्ञान, प्रमाण शास्त्र आदि दर्शन की सभी शाखाओं का विकास जीवन-शोध के निमित्त से न होकर केवल मनवीय जिज्ञासा के फलस्वरूप हुआ है। पाश्चात्य दर्शनों में तत्त्व चिंतन का विकास भी जगत के मौलिक स्वरूप तथा उसके आधारभूत तत्त्वों को जानने की जिज्ञासा के फलस्वरूप हुआ है। जबकि पूर्वी दर्शनों के अन्तर्गत आत्मा के मूल स्वरूप को संपूर्ण रूप से जानने एवं उसको प्राप्त करने के उद्देश्य से तत्त्वज्ञान का विकास हुआ है। भारतीय (पूर्वी) दर्शन में तत्त्व-विचार का स्वरूप : भारतीय दर्शन आध्यात्मिक चिंतन से ओत-प्रोत है। किन्तु मानव जिस भौतिक जगत में रहता है,
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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