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________________ तत्त्व मीमांसा विश्व के बाह्य और आन्तरिक स्वरुप के संबंध में तथा उसके सामान्य एवं व्यापक नियमों के सम्बन्ध में जो तात्विक दृष्टि से विचार किए जाते हैं, उनको तत्व मीमांसा के अन्तर्गत रखा जाता है। विचार करना मानव-स्वभाव है, अतएव प्रत्येक देश में निवास करने वाली प्रत्येक प्रकार की मानव प्रजा में इस प्रकार के विचार अल्प या अधिक मात्रा में उद्भूत होते ही हैं। मानव जब प्रकृति की गोद में आया तब यह विश्व अद्भुत और चमत्कारी वस्तुओं तथा घटनाओं से परिपूर्ण एक अप्रतिम कृति के रुप में उसके समक्ष प्रस्तुत था। एक ओर सूर्य, चन्द्र और अगणित तारामंडल तथा दूसरी ओर समुद्र, पर्वत, विशाल नदी प्रवाह, मेघ गर्जनाएं और विद्युत चमत्कारों ने मानव की जिजिविषा को जाग्रत किया। ज्यों-ज्यों मानव का बौद्धिक विकास हुआ, वह इन विविधताओं एवं आश्चर्यों से परिपूर्ण स्थूल बाह्य जगत के सूक्ष्म चिन्तन में प्रवृत्त हुआ। मानव-मस्तिष्क के बाह्य विश्व के गूढ तथा अतिसूक्ष्म स्वरुप के विषय में और उनके सामान्य नियमों के विषय में विविध प्रश्न उठने लगे। जैसे कि यह अद्भुत विविधताओं से परिपूर्ण जगत कहाँ से आया? किसने इसका निर्माण किया? मनुष्य स्वयं कहाँ से आया है और कहाँ जाएगा? ये सब चिर स्थायी और शाश्वत है अथवा नश्वर है? आदि-आदि। इन प्रश्नों की उत्पत्ति ही तत्वज्ञान के उद्भव का प्रथम सोपान है। पूर्वी तथा पश्चिमी तत्वज्ञान की प्रकृति की तुलना:- भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं दार्शनिक अभिरुचियों की समानता एवं असमानता के आधार पर दर्शन को दो भागों में विभाजित किया जाता है। भारतीय अथवा पूर्वी दर्शन तथा पाश्चात्य अथवा पश्चिमी दर्शन का तत्वज्ञान केवल जगत, जीव और ईश्वर के स्वरुप चिन्तन में ही पूर्ण नहीं होता, अपितु उनमें चारित्र का विचार भी सम्मिलित होता है। अल्प या अधिक अंश प्रत्येक तत्वज्ञान अपने में जीवन शोधन की विविध मीमांसा का समावेश करता है। फिर भी पूर्वी तथा पाश्चात्य तत्व ज्ञान के विकास में थोड़ी भिन्नता भी है। ग्रीक तत्व चिन्तन का प्रारंभ केवल विश्व के स्वरुप संबंधी प्रश्नों से होता है। आगे जाकर क्रिश्चियेनिटी के साथ इसका संबंध होने पर इसमें जीवन शोधन का भी प्रश्न समाविष्ट होता है। इसके विपरीत भारतीय अथवा आर्य तत्वज्ञान के इतिहास में यह विशेषता है, कि इसका प्रारंभ ही जीवन शोधन के प्रश्न से होता है। तत्वज्ञान की
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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