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________________ 304 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन पट तन्तु का कारण नहीं, मृत्पिण्ड घट का कारण है, घट मृत्पिण्ड का कारण नहीं। इस प्रकार जो कारण है, उसे हेतु बनाकर कार्य का अनुमान कर लेना चाहिये, यह सूचित किया गया है। 3. गुणेन : गुण से गुणी का अनुमान करना। जैसे गन्ध से पुष्प का, रस से लवण का, स्पर्श से वस्त्र का, आस्वाद से मदिरा का। 4. अवयवेन : अवयव से अवयवी का अनुमान करना। जैसे हाथी दाँत से हाथी का, पंख से मयूर का, खुर से अश्व का, नख से व्याघ्र का, दो पैर से मनुष्य का, चार पैर से गौ आदि का, चुड़ी सहित बाहु से महिला का, बद्ध परिकरता से योद्धा का, धान्य के एक कण से द्रोण-पाक का और एक गाथा से कवि का। 5. आश्रयेण : आश्रित वस्तु से अनुमान करना। जैसे धूम से अग्नि का, बलाका से पानी का, भ्रम विकार से वृष्टि का और शील समाचार से कुलपुत्र का अनुमान होता है। इस प्रकार प्राचीन जैन दर्शन में शेषवत् अनुमान के उपर्युक्त पाँच भेद स्वीकार किए गए हैं। 3. दृष्टसाधर्म्यवत् : अनुयोग द्वार में दृष्ट साधर्म्यवत् के दो भेद किए गए हैं - 1. सामान्य दृष्ट और विशेष दृष्ट । यथा - __"से किं तं दिट्ठसाहम्मवं? दिढसाहम्मवं दुविहं पण्णतं। तं जहा-सामन्नदिटुं च। विसेसदिटुं च॥140 1. सामान्य दृष्ट साधर्म्यवत् : किसी एक वस्तु को देखकर किसी विशेष में तत्साधर्म्य का ज्ञान करना, सामान्यदृष्ट है। उदाहरण - जैसा एक पुरुष विशेष है, वैसे ही अनेक पुरुष भी हैं। जैसे अनेक पुरुष हैं, वैसा ही एक पुरुष भी है। जैसा एक कर्षापण है, अनेक कर्षापण भी वैसे ही है। जैसे अनेक कर्षापण हैं, एक भी वैसा ही 2. विशेषदृष्ट साधर्म्यवत् : विशेष दृष्ट साधर्म्यवत् वह है, जो अनेक वस्तुओं में से किसी एक को पृथक् करके उसके वैशिष्ट्य का प्रत्यभिज्ञान करता है। शास्त्रकार ने इस अनुमान को भी पुरुष और कर्षापण के दृष्टांत से स्पष्ट किया है। जैसे कोई एक पुरुष बहुत से पुरुषों के बीच में से पूर्वदृष्ट पुरुष का प्रत्यभिज्ञान करता है, कि यह वही पुरुष है या उसी प्रकार कर्षापण का प्रत्यभिज्ञान करता है, तब उसका वह ज्ञान विशेष दृष्ट साधर्म्यवत् अनुमान है। अनुयोगद्वार में दृष्टसाधर्म्यवत् के जो दो भेद किए गए हैं, उनमें प्रथम तो उपमान से और दूसरा प्रत्यभिज्ञान से भिन्न प्रतीत नहीं होता। अनुयोगद्वार, माठर और
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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