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________________ ज्ञान मीमांसा (प्रमाण मीमांसा) * 283 निश्चित विषय का स्मरण हो आता है। इस निश्चय की सतत धारा, तज्जन्य संस्कार और संस्कार जन्य स्मरण-यह मति व्यापार धारणा कहलाता है। अवग्रहादि ज्ञान की उत्पत्ति सहेतुक है। इन चारों की उत्पत्ति इसी निर्दिष्ट निश्चित क्रम में ही होती है। ये चारों ज्ञान मतिज्ञान की उत्पत्ति का क्रमिक विकास है, भिन्न-भिन्न रूप नहीं! अवग्रह, ईहा, अवाय तथा धारणा यदि प्रमेय का यथार्थ निश्चय कराते हैं, तो प्रमाण हैं अन्यथा अप्रमाण क्योंकि प्रमाण का अर्थ है, जो वस्तु जैसी प्रतिभासित होती है, उसका उसी रूप में मिलना। अवग्रहादि के भेद : पाँच इन्द्रियाँ और मन इन छ: साधनों से होने वाले मतिज्ञान के अवग्रह ईहा आदि रूप में जो चौबीस भेद कहे गये हैं, वे क्षयोपशम और विषय की विविधता से बारह-बारह प्रकार के होते हैं। उमास्वाति ने उनका विवेचन इस प्रकार किया है "बहुबहुविधक्षिप्रानिश्रितासंदिग्ध ध्रुवाणां सेतराणाम्॥170 अर्थात् बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत, असंदिग्ध, ध्रुव और इनसे इतर (प्रतिपक्षी सहित) बारह भेद अवग्रहादि से होते हैं। इन बारह-बारह भेदों को हम अग्रसारीणी से अधिक स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं - __ बारह भेद मतिज्ञान के चार उत्पत्तिक्रम 1. बहुग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 2. अल्पग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 3. बहुविधग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 4. एकविधग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 5. क्षिप्रग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 6. अक्षिप्रग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 7. अनिश्रितग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 8. निश्रितग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 9. असंदिग्धग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 10.संदिग्धग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 11.ध्रुवग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद 12.अध्रुवग्राही अवग्रहादि 6 भेद ईहादि 6 भेद अवायादि 6 भेद धारणादि 6 भेद उपर्युक्त बारह भेदों का अर्थ जानना आवश्यक है, जो इस प्रकार है।। 1-2. बहु व अल्प : बहु का अर्थ है- अनेक और अल्प का अर्थ है- एक। जैसे-दो या दो से अधिक पुस्तकों को जानने वाले अवग्रह, ईहा आदि चारों क्रमभावी मतिज्ञान बहुग्राही अवग्रह, बहुग्राहिणी ईहा, बहुग्राही अवाय और बहुग्राहिणी धारणा कहलाते हैं और एक पुस्तक को जानने
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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