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________________ जैन दार्शनिक सिद्धान्त 243 यह स्पष्ट है, कि सप्तभंगी का बौद्धों के चतुष्कोटि निषेध के साथ लेशमात्र भी सरोकार नहीं है । स्याद्वाद संशय वाद नहीं है : जैन दर्शन की यह मान्यता है, कि प्रत्येक पदार्थ अनन्त धर्मात्मक है । अनन्त धर्मात्मकता के बिना किसी पदार्थ के अस्तित्व की कल्पना ही सम्भव नहीं है । किन्तु एक साथ अनन्त धर्मों का निर्वचन नहीं हो सकता । दूसरे धर्मों का विधान और निषेध न करते हुए किसी एक धर्म का विधान करना ही स्याद्वाद हैं। अनेकान्त वाच्य और स्याद्वाद वाचक है । अमुक अपेक्षा से घट सत् ही है और अमुक अपेक्षा से घट असत् ही है, यह स्याद्वाद है। इसमें यह प्रदर्शित किया गया है, कि स्वचतुष्टय से घट की सत्ता निश्चित है और परचतुष्टय से घट की असत्ता निश्चित है। इस कथन में संशय को कोई स्थान नहीं है। किन्तु 'स्यात्' शब्द के प्रयोग को देखकर, स्यादवाद की गहराई में न उतरने वाले कुछ लोग, यह भ्रमपूर्ण धारणा बना लेते हैं, कि स्याद्वाद अनिश्चय की प्ररूपणा करता है। वस्तुतः 'स्यात्' शब्द का अर्थ न शायद है, न सम्भवतः है और न कदाचित् जैसा ही है। वह तो एक सुनिश्चित सापेक्ष दृष्टिकोण का द्योतक है। प्रो. बलदेव उपाध्याय ने लिखा है - 'अनेकान्तवाद संशयवाद नहीं है । परन्तु वे उसे 'संभवतः ' के अर्थ में प्रयुक्त करना चाहते हैं, मगर यह भी संगत नहीं है।' - शंकराचार्य ने अपने भाष्य में स्यादवाद को संशयवाद कहकर जो भ्रान्त धारणा उत्पन्न की थी, उसकी परम्परा अब भी बहुत अंशों में चल रही है । किन्तु प्रो. फणिभूषण अधिकारी ने आचार्य शंकर की धारणा के सम्बन्ध में लिखा है, कि ‘जैन धर्म के स्यादवाद सिद्धान्त को जितना गलत समझा गया है, उतना अन्य किसी भी सिद्धान्त को नहीं।' यहाँ तक कि शंकराचार्य भी इस दोष से मुक्त नहीं है। उन्होंने भी इस सिद्धान्त के प्रति अन्याय ही किया है। यह बात अल्पज्ञ पुरुषों के लिए क्षम्य हो सकती थी, किन्तु यदि मुझे कहने का अधिकार है, तो मैं भारत के इस महान् विद्वान के लिए तो अक्षम्य ही कहूँगा, यद्यपि मैं इस महर्षि को अतीव आदर की दृष्टि से देखता हूँ। ऐसा जान पड़ता है, कि उन्होंने इस धर्म के दर्शनशास्त्र के मूलग्रन्थों के अध्ययन की परवाह नहीं की।' स्पष्ट है, कि स्याद्वाद संशयवाद नहीं है। सभी दर्शन किसी न किसी रुप में इसे स्वीकार करते हुए भी इसका नाम लेने में हिचकते हैं । पाश्चात्य विद्वान थामस का यह कथन ठीक ही है कि, ' स्याद्वाद सिद्धान्त बड़ा गम्भीर है। यह वस्तु की भिन्न-भिन्न स्थितियों पर अच्छा प्रकाश डालता है। स्याद्वाद का सिद्धान्त दार्शनिक जगत में बहुत ऊँचा सिद्धान्त माना गया है । वस्तुतः स्याद्वाद सत्यज्ञान की कुञ्जी है। दार्शनिक क्षेत्र में स्याद्वाद को सम्राट का रुप दिया गया है । स्याद् शब्द को एक प्रहरी के रुप में स्वीकार करना चाहिये, जो उच्चारित धर्म
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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