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________________ 206 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन (vi) ज्ञान - विसंवाद ( उपघात ) - ज्ञान के साधनों को नष्ट करना । ज्ञानी के वचनों में विसंवाद करना या विरोध दिखाना । अपने मिथ्यामत को सत्य सिद्ध करने का प्रयास करना ज्ञान उपघात है । 2. दर्शनावरणीय कर्मबन्ध के कारण : दर्शनावरणीय कर्मबन्ध के भी ये छः कारण हैं (i) दर्शन- प्रदोष सम्यग्दर्शन अथवा दर्शनी की निन्दा करना, दोष निकालना, और उनके दर्शन से प्रतिकूलता रखना। (ii) दर्शन - निह्नव दर्शन या सम्यग्दृष्टि का अपलोपन करना उनका नाम छुपाना और उनके विरुद्ध दर्शन का प्रचार करना । 1 (iii) दर्शन - मात्सर्य - सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्दृष्टि के प्रति ईर्ष्या द्वेष रखना । (vi) दर्शनान्तराय - सम्यग्दृष्टि बनने में अन्तराय (बाधा) डालना। (v) दर्शन - अशातन सम्यग्दर्शनी व दर्शन की अवहेलना करना, अपमान करना । (vi) दर्शन उपघात - सम्यग्दर्शन व दर्शन के वचनों का विरोध करना, विसंवाद करना तथा मिथ्यादर्शन को प्रतिष्ठित करने का प्रयास करना । 3. वेदनीय - कर्मबन्ध के कारण : वेदनीय कर्म दो प्रकार के होते हैं1. साता वेदनीय 2 असातावेदनीय। दोनों प्रकार के कर्म-बन्धन के छः-छः कारण बताए गए हैं - 1. सातावेदनीय कर्म-बन्ध के कारण "" 'भूत - व्रत्यानुकम्पा - दानं सराग-संयमादि-योगः क्षान्तिः शोचमिति सवेद्यस्य । ' 19129 अर्थात भूतानुकम्पा व्रती अनुकम्पा, दान, सराग संयम, क्षमा और शोच सातावेदनीय कर्मबन्ध के कारण हैं। (i) भूतानुकम्पा - चारों गतियों के समस्त जीवों पर दया भाव रखना । जैसा कि भगवती सूत्र में लिखा है, कि प्राणियों पर अनुकम्पा रखने से भूतों (वनस्पति कायिक जीवों) पर अनुकम्पा करने से, जीवों (पंचेन्द्रिय जीवों) पर अनुकम्पा करने से तथा सत्वों (स्थावर जीवों) पर अनुकम्पा करने से और बहुत से प्राण भूत, जीवों, सत्वों को दुख न देने से, शोक न करने से, न रुलाने से, न मारने-पीटने से और न परितापित करने से जीव सातावेदनीय कर्मबन्ध करते हैं । 130 (ii) व्रती - अनुकम्पा - जिन व्यक्तियों ने व्रत नियम आदि ग्रहण किए हैंजो सर्वविरत साधुवर्ग हैं अथवा देश विरत श्रावक वर्ग हैं, उन्हें सहयोग देना, उनकी सेवा - सुश्रुषा करना, उनके प्रति श्रद्धाभाव रखना, उन्हें
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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