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________________ जैन दार्शनिक सिद्धान्त * 205 जलाशय में पानी का आगमन नाली, झरने आदि किसी स्त्रोत से होता है, इसी प्रकार कर्मों का आगमन योग नैमित्तिक होने से इनको आस्रव कहते हैं। योग केवल द्रव्य कर्म है। योग के निमित्त से आगमित कर्म दो समय से अधिक नहीं रहते हैं। अतः जब तक अष्ट कर्मों का क्षय नहीं होता तब तक योग निमित्त से कर्म आते हैं, और दो समय से स्वतः ही चले जाती हैं। ये इर्यापथिक कर्म कहलाते हैं। इनसे कर्मबन्ध नहीं होता। जब योग के साथ कषाय का संयोग होता है तभी कर्मबन्ध होता है। निष्कर्ष यह है, कि योग केवल कर्म पुद्गलों को लाने वाला संवाहक है, कषाय उन्हें उत्तेजित करके आत्मा के साथ बांध देते हैं। द्रव्यकर्म (योग) एक प्रकार का ईंधन है और भाव कर्म (कषाय) आग है। ईंधन एकत्र कर दिया जाए, लेकिन आग प्रज्वलित न हो तो ईंधन कुछ नहीं कर सकता। ईंधन तभी आग को बढ़ाता है, जबकि आग जल रही हो। अर्थात योग के साथ कषाय का संयोग हो तभी कर्मबन्ध होता है।" इस प्रकार मिथ्यात्व से लेकर योग पर्यंत से पाँचों आस्रव समस्त कर्म-बन्धन के कारण हैं। जीवों की समस्त क्रियाओं को इनमें समाहित किया गया है। किंतु साधारण बुद्धिवाले व्यक्ति इन्हें हृदयंगम नहीं कर सकते। अतः ज्ञानावरणादि जो आठ कर्म हैं, उन समस्त कर्मों के बन्धन के पृथक-पृथक कारणों का विवेचन आगमों में किया गया है, जो इस प्रकार है 1. ज्ञानावरणी कर्म बन्ध के कारण- ज्ञानावरणीय कर्म बन्ध के छः कारण तत्वार्थ सूत्र में बताए गए हैं "तत्प्रदोष निह्नव मात्सर्यमन्तरायासादनोपघाता ज्ञान दर्शनावरणयोः" अर्थात् तत् प्रदोष, निन्हव, मत्सर, अन्तराय, आशातना और उपघात आस्रव ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्म के बन्ध हेतु हैं। (i) ज्ञान प्रदोष- सम्यग्ज्ञान अथवा ज्ञानी की निन्दा करना उनके दोष निकालना तथा उनसे प्रतिकूलता रखना। (ii) ज्ञान निह्नव- ज्ञानी तथा ज्ञान के साधनों का अपलोपन करना। ज्ञानदाता गुरु के नाम को छुपाना, उनके विरुद्ध ज्ञान का प्रचार करना, ज्ञान के साधन पुस्तक आदि होते हुए भी कहना, कि नहीं है आदि। (iii) ज्ञान-मात्सर्य - ज्ञान तथा ज्ञानी के प्रति ईर्ष्या-द्वेष रखना। (iv) ज्ञान-अन्तराय - किसी के ज्ञान प्राप्ति में बाधा पहुँचाना, अन्तराय डालना, पुस्तक आदि ज्ञान के साधनों को छुपा देना। ज्ञान-आशातना - ज्ञानी या ज्ञान के साधनों की अवहेलना करना, अपमान करना, उनकी अविनय आशातना है। ज्ञानी को दुःखी करना, पुस्तकें जला देना, फाड़ देना, फैंक देना आदि चेष्टाएँ भी ज्ञानासादन हैं।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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