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________________ 194 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन करता है। आयुष्य कर्म आत्मा की अटल अवगाहना शाश्वत स्थिरता को नहीं रहने देता। गोत्र कर्म आत्मा के अगुरु लघु भाव को रोकता है। इस प्रकार अघाती कर्म अपना प्रभाव दिखाते हैं । जब घाती कर्म नष्ट हो जाते हैं, तब आत्मा केवलज्ञान केवल दर्शन का धारक अरिहन्त बन जाता है ।" और जब अघाती कर्म नष्ट हो जाते हैं, तब विदेह, सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो जाता है।" कर्म-भेद (अष्ट कर्म) : शुभ और अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा आकृष्ट और सम्बन्धित होकर जो पुद्गल आत्मा के स्वरूप को आवृत्त करते हैं, विकृत करते हैं और शुभाशुभ फल के कारण बनते हैं (शुभाशुभ रुप से उदय में आते हैं) आत्मा द्वरा गृहित उन पुद्गलों का नाम है-कर्म । यद्यपि ये पुद्गल एक रूप हैं, फिर भी ये जिस आत्मगुण को आवृत, विकृत या प्रभावित करते हैं, उसके अनुसार ही उन पुद्गलों का नाम हो जाता है 1 आत्मा के गुण आठ हैं 1. केवलज्ञान, 2. केवलदर्शन, 3. अनन्त सुख, 4. क्षायिक- सम्यक्त्व, 5. अटल अवगाहना, 6. अमूर्तिकपन, 7 अगुरुलघुपन और 8 लब्धि। अतः इन आठ आत्मगुणों को आवृत्त करने वाले कर्म भी आठ है ।" आत्मा के मोक्ष (मुक्ति) के लिए इन अष्ट कर्मों को भलीभाँति समझना आवश्यक है। 1. ज्ञानावरणीय कर्म : जीव चैतन्यमय है । उपयोग उसका लक्षण है । * उपयोग शब्द ज्ञान और दर्शन का संग्राहक है ।" ज्ञान साकारोपयोग है और दर्शन निराकारोपयोग है। जिससे जाति गुण, क्रिया आदि विशेष धर्मों का बोध होता है, वह ज्ञानोपयोग है और जिससे सामान्य धर्म अर्थात् सत्ता मात्र का बोध होता है, वह दर्शनोपयोग है ।" जिस कर्म के प्रभाव से ज्ञानोपयोग आच्छादित रहता है, वह ज्ञानावरण कर्म हैं। जैसे नेत्रों पर कपड़े की पट्टी लगा देने से नेत्रज्ञान अवरुद्ध हो जाता है, वैसे ही ज्ञानावरण कर्म के प्रभाव से आत्मा की समस्त पदार्थों को सम्यक् प्रकार से जानने की ज्योतिर्मय ज्ञान शक्ति आच्छादित हो जाती है । - ज्ञानावरणीयकर्म पाँच प्रकार के होते हैं 1. मतिज्ञानावरण, 2. श्रुत ज्ञानावरण 3. अवधिज्ञानावरण, 4. मनः पर्याय ज्ञानावरण तथा 5. केवलज्ञानावरण 12 मतिज्ञानावरण कर्म इन्द्रियों तथा मन से होने वाले ज्ञान का निरोध करता है । श्रुत ज्ञानावरण कर्म शब्द और अर्थ की पर्यालोचना से होने वाले ज्ञान को आच्छादित करता है। अवधिज्ञानावरण कर्म इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना होने वाले रूपी पदार्थों के मर्यादित प्रत्यक्ष ज्ञान को अवरुद्ध करता है । मनः पर्यायज्ञानावरण कर्म इन्द्रिय तथा मन की सहायता के बिना संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को जानने वाले ज्ञान को अच्छादित करता है । केवलज्ञानावरण कर्म सर्व द्रव्यों और पर्यायों को युगपत् प्रत्यक्ष जानने वाले ज्ञान को आवृत करता है ।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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