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________________ जैन दार्शनिक सिद्धान्त विश्व की समस्त गतिविधियाँ विचारमूलक या विचार प्रेरित होती हैं। सभी कार्य चिन्तन से प्रसूत और फलित होते हैं। चिन्तन की परिष्कृतता और व्यापकता से दर्शन उद्भूत होते हैं। समीक्षित श्रृंखलाबद्ध विचारों को ही दर्शन कहते हैं। दर्शन विश्व के रहस्यों की तिजोरी को खोलने की कुंजी है। इस संसार के रहस्यों को जानने के लिए अनेक मनीषियों ने चिन्तन किया और करते हैं। उनके चिन्तन सरिता के प्रवाह से अनेक दर्शन उद्भूत हुए। प्रत्येक दर्शन की अपनी विशष्टि मान्यताएँ, स्वतंत्र विचारणा तथा अपने अलग विधि-विधान होते हैं। उन्हीं विचारों के मन्थन के द्वारा निकले मक्खन को दार्शनिक सिद्धान्त कह सकते हैं, जो दर्शन की अपनी विचार दृष्टि के धरातल पर निर्मित होते हैं। दार्शनिक सिद्धान्त प्रत्येक दर्शन का सार या आधार कहा जा सकता है। जैन दर्शन ने ऐसे दो प्रसून निपजाए हैं, जो मानव जीवन की बगिया को सुरभित करने के साथ-साथ उसे श्रेय बनाने वाले हैं। ये दो प्रसून जैन दर्शन के अनुपम, अनमोल दार्शनिक सिद्धान्त हैं - 1. कर्म सिद्धान्त और 2. अनेकान्तवाद। जैन दर्शन वस्तुवादी है। यह अनुभव से प्रारम्भ करता है, फिर अनुभव के बौद्धिक विश्लेषण से निष्कर्ष निकलता है। तब उस बौद्धिक स्तर को साक्षात अनुभव या केवलज्ञान के स्तर तक ले जाता है। इस प्रकार सभी दार्शनिक समस्याओं का समाधान आत्म साक्षात्कार या केवलज्ञान के द्वारा ही विवेचित करता है। इसी साक्षात् अनुभव के द्वारा ही केवलज्ञानी तीर्थंकरों ने आत्मा को केन्द्र-बिन्दु बतलाया है और आत्म कर्तृत्ववाद का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। आध्यात्मिक धरातल पर श्रेय रूप में आत्मा की उच्चता को प्रतिष्ठित किया है। उसके कर्म-स्वातंत्र्य को स्वीकार करके अपने जीवन का निर्माता एवं विघटनकर्ता स्वयं आत्मा को ही माना है। जैन दर्शन ने सशक्त स्वर में आत्म-कर्तृत्व की स्वतंत्रता का प्रतिपादन करते हुए कर्म-सिद्धान्त को प्रतिष्ठित किया है। यह कर्म-सिद्धान्त सर्वथा मौलिक एवं वैज्ञानिक है। कर्म-सिद्धान्त को अन्य दर्शनों ने भी स्वीकार किया है, लेकिन उसे ईश्वराधीन मान लिया है। जिससे मानव में उदासीनता आती है तथा कर्म में सजगता नहीं रहती। जबकि जैन दर्शन में कहा गया है 'अप्पा कत्ता विकत्ताय सुहाणय दुहाणय।"
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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