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________________ सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 147 पर ही व्यक्ति कल्याण को प्राप्त होता है।" ___ नारी निन्दा के अनेक प्रसंग मिलते हैं, किंतु प्रसंगों को सम्यक् दृष्टि से देखने पर हम पाएँगे, कि नारी की यह आलोचना लोकोत्तर दृष्टि से की गई। मुनियों को निवृत्ति मार्ग पर स्थिर रखने के लिए और पुरुषों को संसार के जन्म-मरण से छुटकारा दिलाने के लिए है। किंतु साथ ही साध्वियों के लिए भी आध्यात्मिक साधना हेतु पुरुषों से दूर रहने का विधान किया गया है। अतः यह धर्म साधना की माँग है, कि स्त्री पुरुष पृथक् रहें, तभी वे मोह माया से अपने आपको बचा सकते हैं। पुरुष की साधना भंग होने में स्त्री अकेली दोषी नहीं होती वरन् पुरुष भी उतना ही दोषी होता है। लेकिन पुरुष अपनी कमजोरी से विचलित होकर जब मार्ग से च्युत हो जाता है और पुनः उसे अपनी भूल का अहसास होता है, तो वह अपनी सारी भड़ास स्त्री पर निकालता है और संपूर्ण रूप से उसे दोषी ठहराता हुआ नारी को सभी बुराइयों से युक्त कहता है। पुरुष अपनी कमजोरी को स्वीकार नहीं करना चाहता है। दूसरी और स्त्रीयों के साथ ऐसा हो भी जाए तो वे स्वयं की गलती का अहसास रखते हुए लज्जाशीलता के कारण एक शब्द भी पुरुष के विरोध में नहीं बोलती है। इसके अतिरिक्त स्त्री की संकल्पशक्ति अधिक दृढ़ होती है। दूसरे अधिकांश ग्रन्थों का आलेखन पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। अतः स्त्री को दोषारोपित किया जाता है। जहाँ नारी को नरक में ले जाने वाली कुंजी माना है, वहीं जैन धर्म में ऐसी भी सन्नारीयाँ हुई हैं, जिन्होंने ऐसे मुनि को भी धर्म आचरण में स्थिर किया है, जो अपने पथ से विचलित हो गए थे। जैसे राजीमति ने रथनेमि को प्रतिबोधित कर अपने आचार में स्थिर किया था। इस प्रकार नारी को माता, उपासिका और साध्वीरूप में हमेशा पूज्य माना है। जहाँ पुरुष से नारी की तुलना हुई है, वहाँ नारी को सदैव हीन ही रखा गया है, चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो अथवा सामाजिक। फिर भी जैन धर्म में नारी को आध्यात्मिक क्षेत्र में जितना अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है उतना प्राचीन संस्कृति में अन्यत्र नहीं मिलता है। नारी युगीन संस्कृति की उर्जस्विनी अविरल धारा है, वही चेतना है, वही शील संपन्न है। पुरुष यदि ज्ञान शक्ति का प्रतीक है, तो नारी क्रिया शक्ति है। सांस्कृतिक विकास : संस्कृति का अर्थ : संस्कृत शब्द सम् उपसर्ग कृ धातु के सुर का आगम करके कृत प्रत्यय लगाकर बना है। जिसका अर्थ है, उत्तम बनाना, संशोधन करना, परिष्कार करना। अंग्रेजी में इसे Culture कहते हैं। जो लेटिन के Cultura से बना है, जिसका अर्थ सुधारना है। इस प्रकार संस्कृति का शाब्दिक अर्थ है व्यक्ति को परिष्कृत करना, उसको उत्तम बनाना तथा उसमें कोई कमी हो तो उसे सुधारना।। संस्कृति का कलेवर विशाल है, जिसमें सभी मानव निर्मित वस्तुओं के साथ
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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