SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन सेवा, व्रत-उपवास एवं धर्म साधना में लगाकर, आत्मकल्याण में प्रवृत्त होकर बिताती थीं। विधवाओं को दुर्भाग्यशाली समझा जाता था। इन उपर्युक्त कुप्रथाओं के कारण स्त्रियाँ अपने उत्थान के लिए पुरुषों की शक्ति पर निर्भर नहीं रहती थी । स्त्री ही स्त्री का विपत्ति से उद्धार करती थी। उस समय स्त्रियों में सहयोग और सहकारिता की भावना सर्वाधिक थी । नारी को नारी पर अटूट विश्वास था । विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में नारी के सम्बन्ध में विविध प्रकार के वृतान्त दिए गए हैं । कहीं उसकी अपार प्रशंसा की गई है, तो कई स्थलों पर उसे अधम निरुपित करते हुए धार्मिक कृत्यों से वंचित किया गया है। वैदिक ऋचाओं के वाचन का उसे अधिकारी नहीं माना गया है। अन्यत्र उसे सन्यास लेने का भी निषेध किया गया है। अतः इसी तारतम्य में अब जैन धर्म में नारी की स्थिति का विवेचन प्रस्तुत करना समीचीन प्रतीत होता है । जैन दर्शन में नारी सम्बन्धी प्राचीन मूल्यों के स्थान पर उसको पुरुषों की भाँति ही आर्थिक अधिकार प्रदान किए गए। जहाँ भगवान बुद्ध ने संशय की स्थिति के उपरान्त 5 वर्ष बाद नारी को दीक्षित किया, वहीं भगवान महावीर ने कैवल्य प्राप्ति के बाद जब गौतम को दीक्षित किया वहीं चन्दनबाला को भी दीक्षित कर श्रमणी संघ की प्रवर्तिनी नियुक्त किया । श्रावक और श्राविकाओं के लिए समान 12 व्रतों का विधान किया गया था। जैसे कि मल्ली कुमारी ने तीर्थंकर पद को प्राप्त किया था तथा पुरुष तीर्थंकरों के समान ही मल्ली द्वारा दीक्षा ग्रहण की गई तथा अन्य तीर्थंकरों के समान मल्ली का चतुर्विध संघ था, जिसमें 28 गणधर 40 हजार श्रमण, 55 हजार साध्वियाँ, 1 लाख 84 हजार श्रावक, 3 लाख 65 हजार श्राविकाएँ थीं । " अतः मात्र जैन धर्म एक ऐसा धर्म था, जिसने नारी को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया इतना ही नहीं, उसके अधीन अनेक गणधर और श्रमण थे । मल्ली उन सबकी प्रमुख थी। इस प्रकार नारी भी सिद्ध गति को प्राप्त कर सकती है। जैन धर्म की अनेक प्रसिद्ध उपासिकाएँ थीं, जो धर्म निष्ठ और विद्वान् थीं। सुलसा, सुभद्रा, राजीमति, जयन्ती आदि। इन सभी ने त्यागमय जीवन व्यवतीत किया और मोक्ष प्राप्त किया। जो नारी शील की रक्षा के लिए त्याग करती थी उसे देवता भी वन्दन करते थे।" जैन धर्म में जहाँ नारी को पुरुष के समान अधिकार दिए गए हैं, वहीं अनेक ऐसे भी उदाहरण प्राप्त होते हैं जब उसकी निन्दा भी की गई है और उसे मोक्ष मार्ग में बाधक माना गया है । इसके विषय में यहाँ तक कहा गया है, कि स्त्री के विषय में मन में विचार मात्र से मलिनता का दोष उत्पन्न होता है।” नारी को प्रतीकात्मक दृष्टि से काम का रूप प्रतिपादित किया गया है। यह भी स्पष्ट किया गया है, कि नारी मोह से छुटकारा पाने
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy