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________________ 140 जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन ही धार्मिक ग्रन्थों में जैन विवाह विधि का कोई विवेचन है। वरन् सामाजिक व्यवहार एवं कर्तव्यों के समुचित निर्वाह एवं मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही विवाह संस्था को महत्त्वपूर्ण माना गया है। 7. संस्कार संस्था : संस्कार शब्द व्यक्ति के दैहिक मानसिक और बौद्धिक परिष्कार के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों से सम्बद्ध है। जिस प्रकार आत्मा की पवित्रता के लिए विकार शोधन की गुणस्थान प्रणाली मान्य है, उसी प्रकार देह शुद्धि और पात्रत्व विकास के लिए संस्कार भी अपेक्षित है। संस्कार शब्द धार्मिक क्रियाओं के लिए प्रयुक्त हुआ है । जन्म दो प्रकार का माना गया है- शरीर जन्म और संस्कार जन्म । शरीर की प्राप्ति रूप शरीर जन्म है और संस्कारों द्वारा अपने को पवित्र करना संस्कार जन्म है । संस्कार द्वारा मिथ्यात्व दूर किया जाता है, जिससे व्यक्ति वास्तव में समाज के लिए उपयोगी बनता है। व्रती व्यक्ति ही ब्राह्मण है, परमेष्ठी ब्रह्मा कहे जाते हैं । आदिपुराण में जीव के गर्भाधान संस्कार से लेकर निर्वाण पर्यन्त विविध 53 क्रिया संस्कारों का विवेचन किया गया है। जैसे बालक का नामकर्म संस्कार, निषधा (आसन पर बैठना ) संस्कार, व्युष्टि संस्कार (जन्मदिन), लिपि संख्यान संस्कार आदि । क्रियाओं और मन्त्रों से सुसंस्कार को प्राप्त हुआ व्यक्ति अत्यन्त उत्कर्ष को प्राप्त करता है। ये संस्कार ज्ञान से उत्पन्न होते हैं और सबसे उत्कृष्ट ज्ञान सम्यग्ज्ञान है, जिसे यह प्राप्त हो जाता है, वह अपनी आत्मा का उद्धार करने में समर्थ हो जाता है । स्वाध्याय, पूजन, अतिथि सत्कार एवं ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने से स्व-पर कल्याण होता है । आदिपुराण में ज्ञात कर्म, अन्न प्राशन, चौल और उपनयन संस्कार का विशेष रूप से उल्लेख आया है ।" 15 8. कुल संस्था : पिता की वंशशुद्धि को कुल कहते हैं । कुलाचार का योग्य रीति से पालन करते हुए पुत्र-पौत्रादि सन्तति में एकरूपता बना रहना कुलशुद्धि है । आदि पुराण में बताया गया है - “कुलावधिः कुलाचाररक्षणं स्यात् द्विजन्मनः । तस्मिन्न सत्यसौ नष्टक्रियोऽन्यकुलतां भजेत् ॥' ,,17 अपने कुल की रक्षा करना द्विजों की कुलावधि क्रिया कहलाती है । कुल के आचार की रक्षा न होने पर पुरुष की समस्त क्रियाएं नष्ट हो जाती है और वह अन्य कुल को प्राप्त हो जाता है । जिसका कुल और गौत्र शुद्ध है, वही द्विज दीक्षा ग्रहण कर सकता है । उपनयन संस्कार से पवित्र, शुद्ध कुल और असि, मसि, कृषि एवं वाणिज्य आदि क्रियाओं द्वारा आजीविका चलाने वाले निरामिष भोजी, संकल्पी, हिंसा का त्यागी एवं अभक्ष्य और अपेय सेवन का त्यागी, व्रतपूत व्रतचर्या विधि का अधिकारी है। कुल स्त्री का सेवन
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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