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________________ सामाजिक, राजनैतिक व सांस्कृतिक विकास पर प्रभाव * 139 3. वानप्रस्थः वानप्रस्थ आश्रम, नैष्ठिक आश्रम का साधक वाला रूप है, जिसमें घर छोड़कर क्षुल्लक और ऐलक व्रतों द्वारा अपनी आत्मा की शुद्धि की जाती है। देश संयम की प्राप्ति हो जाने से प्रबुद्ध वानप्रस्थ अपनी आत्म साधना में संलग्न रहता है। 4. सन्यास: चतुर्थ सन्यास आश्रम है। इसमें मुनि दीक्षा सम्पन्न होती है और सांसारिक बन्धनों के साथ कर्म बन्धन को तोड़ने के लिए पूर्ण संयम का पालन किया जाता है। सामाजिक दृष्टि से यह संस्था निम्न प्रकार से उपयोगी है - 1. प्रेम और सौहार्द का प्रसारण होता है। 2. सामाजिक अाओं और नैतिकता की प्रतिष्ठा होती है। 3. समाज नियंत्रण-वैयक्तिक कर्तव्य और दायित्व की भावना से ही समाज नियंत्रित होता है। 4. भौगोलिक और सांस्कृतिक वातावरण की प्रतिष्ठा होती है। 6. विवाह-संस्था : परिवार का संचालन विवाह संस्था के बिना संभव नहीं है। विवाह चिर मर्यादित समाज संस्था है। जीवन में धर्म, अर्थ, काम आदि पुरुषार्थों का सेवन विवाह संस्था के बिना असंभव है। गृहस्थ जीवन का वास्तविक उद्देश्य दान देना, देवपूजा करना एवं मुनिधर्म के संचालन में सहयोग देना है। साधु-मुनियों को दान देने की क्रिया गृहस्थ-जीवन के बिना सम्पन्न नहीं हो सकती है। स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना अकेली स्त्री दानादि क्रिया सम्पादित करने में असमर्थ है। अतः चतुर्विध संघ के संरक्षण की दृष्टि से और कुल परम्परा का निर्वाह करने की दृष्टि से विवाह-संस्था की परम आवश्यकता है। सामाजिक दृष्टि से विवाह के निम्नलिखित उद्देश्य हैं -- 1. धार्मिक कर्त्तव्यों का पालन। 2. सन्तान प्राप्ति। 3. परिवार के प्रति दायित्व एवं कर्त्तव्यों का निर्वाह । 4. समाज के प्रति दायित्व एवं कर्तव्यों का निर्वाह । 5. व्यक्ति का विकास। 6. गृहस्थ धर्म की आहार दानादि क्रियाओं का निर्वाह। 7. स्त्री पुरुष के यौन सम्बन्ध का नियंत्रण और वैधीकरण। शास्त्रकारों ने विवाह की परिभाषा करते हुए लिखा है - "सद्वैद्यस्य चारित्रमोहस्य चोदयाद् विवहनं कन्यावरणं विवाह इत्याख्यायते।" अर्थात् सातावेदनीय और चारित्रमोहनीय के उदय से विवहन-कन्यावरण करना विवाह कहा जाता है।" अग्नि, देव और द्विज की साक्षी पूर्वक पाणिग्रहण क्रिया का सम्पन्न होना विवाह है। जैनों में विवाह संस्कार को धार्मिक दृष्टि से अधिक आवश्यक नहीं बताया गया है, न
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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