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________________ 104 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन प्रावधान किया गया था। विलक्षण बात यह है, कि शय्याओं से युक्त ये गुफाएँ उस समय से बहुत पहले की हैं, जब दक्षिणा पथ में किसी जैन वास्तु-स्मारक का निर्माण किया गया होगा। तमिलनाडु में यत्र-तत्र स्थित ब्राह्मी अभिलेखांकित ये गुफाएँ पूर्वी घाट के अनेक स्थानों विशेष रूप से मदुरै के आस-पास के क्षेत्र में मिलती हैं। ये प्रारंभिक जैन अधिष्ठान कई कारणों से महत्त्वपर्ण हैं - 1. वे इस क्षेत्र के प्राचीनतम प्रस्तर स्मारकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 2. ब्राह्मीलिपि में तमिल भाषा के प्राचीनतम अभिलेख उत्कीर्ण हैं। ___ 3. और वे तमिलनाडु में जैन धर्म के प्रारंभिक प्रसार के प्रामाणिक साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। फलस्वरूप प्रस्तर और शैलोत्कीर्ण शैली की प्राचीनतम . वास्तु-शिल्पीय गतिविधि और इस क्षेत्र में प्राप्त प्राचीनतम लेखों के अध्ययन में इनका अत्यधिक महत्त्व है, यद्यपि कलागत और सौंदर्यगत विकास की दृष्टि से वे किसी गतिविधि का प्रारंभ कदाचित ही करते हैं । तथापि धार्मिक स्थापत्य के उपयोग में लायी गयी प्रस्तरसामग्री का प्रवर्तन उन आद्य प्रस्तर स्मारकों में देखा जा सकता है, जो अधिकांशतः जैन हैं। इसमें कम ही संदेह है, कि इन गुफाओं ने परवर्ती काल में जैन और ब्राह्मण धर्मों की उन शैलोत्कीर्ण गुफाओं का मार्ग प्रशस्त किया जो उसी क्षेत्र में विकसित हुई, जहाँ ब्राह्मी अभिलेखांकित प्राचीन गुफाएँ विद्यमान हैं। इन जैन केन्द्रों की कुछ सामान्य विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं। प्राकृतिक गुफाओं को इस प्रकार से परिवर्तित किया गया, कि वे आवास के योग्य बन सकीं। ऊपर, बाहर की ओर लटकते हुए प्रस्तर खण्ड का शिला-प्रक्षेप के रूप में इस प्रकार काटा गया, कि उसने जल को बाहर निकालने तथा नीचे शरण स्थल बनाने का काम किया। गुफाओं के भीतर शिलाओं को काटकर शय्याएँ बनायी गयीं, जिनका एक छोर तकिए के रूप में प्रयोग करने के लिए कुछ उठा हुआ रखा गया। शय्याओं को छैनी से काट-काटकर चिकना किया गया। ऐसा प्रतीत होता है, कि कुछ पर तो पॉलिश भी की गई थी। दाता या आवासकर्ता के नामों के उल्लेखयुक्त ब्राह्मी अभिलेख या तो शय्याओं पर उत्कीर्ण हैं या ऊपर की ओर लटकते हुए शिला-प्रक्षेप पर। इन गुफाओं के सामने स्तंभों पर आधारित खपरैल की छत के रूप में अतिरिक्त निर्माण कार्य भी किया गया था। स्तंभों को स्थिर करने के लिए उकेरे गए कोटर आज भी कुछ गुफाओं के सामने शिलाओं पर देखे जा सकते हैं। गुफाएँ प्रायः झरनों के समीप स्थित हैं, जल की सुविधापूर्वक प्राप्ति के लिए ही ऐसे स्थानों को चुना गया था। मदुरै के निकटवर्ती पहाड़ी क्षेत्र कदाचित तमिलनाडु में जैनों के प्रमुख केन्द्र थे,
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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