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________________ [ ४१ ] प्रतिलिख्य च ध्रियते मयूरपिच्छस्याऽसन्निधाने "मृदुवस्त्रेण" कदाचित्तथा कियते निक्षेपणा नाम्नी पंचमी समीति भवति ॥ (चारित्र प्राभृत गा० ३६ श्रुतसागरी टीका) १४-मुनि चारित्रो पकरण पीछी के बिना नहीं चल सकता है ( चारित्रसार, छेदपीड.० ८०, चर्चासागर चर्चा०७, आ० कुन्द कुन्द चरित्र) १५-तयोरुपकरणा सक्ति संभवात् आर्तध्यानं कदाचित्कं संभवति, आर्त ध्यानेन लेश्यादित्रयं भवतीति । ___ पांचो निर्गन्थ उपकरण वाले होते हैं उनमें से बकुश और प्रति सेवना कुशील को कभी आसक्ति भी होती है जब उनको आर्त ध्यान होता है तब शुरू की तीन लश्या ये भी होती हैं। ( चारित्र सार, विद्वज्जन बोधक पृ० १७९) १६-मोक्षाय धर्मसिध्यर्थं शरीरं धार्यते यथा । शरीर धारणार्थं च भैक्षग्रहण मिष्यते ॥१॥ तथैवोपग्रहार्थाय पात्र चीवरमीप्यते । जिनै रूपग्रहः साधो रिष्यते न परिग्रहः ॥२॥ माने मोक्ष और धर्म की साधना में शरीर भीक्षा पात्र वस्त्र वगैरह उपकारक साधन हैं ये परिग्रह नहीं है किन्तु उपग्रह हैं। (वा० अश्वसेन कृत......... ) १७-वस्त्र पात्राश्रयादिन्य-पराण्यपि यथोचितम् दातव्यानि विधानेन रत्नत्रितयहेतवे ॥ ( आ. अमितगति) १८-शय्या सनोपधानानि, शास्त्रोपकरणानि च पूर्व सम्यक् समालोच्य प्रतिलिख्य पुनः पुनः १२ गृह्णतोऽस्य प्रयत्नेन, क्षिपतो वा धरातले भवत्य विकला साधो-रादान समिति स्फुटम् १३ शय्या, आसन, उपधान, शास्त्र उपकरण वगैरा
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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