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________________ [५] के अनुकरबंध को छोड़कर जो उ प-योता है वो भव। इस प्रकार अनुत्कृष्ट उच्च गोत्र के अनुभाग अंध में ५ भेद बतलाये। "उस जगर (सम्यक्त्व यमन के बाद) इस अजमन्य नीच गोत्र के अनुभाग:बंध को सादिबंध करना। फिर उसी मिथ्या - हटिजीव को इस अंत के समय में पहले जो बंध है पापनादि है। प्रभव्य जीव को वह बंध भुव है। और वहाँ अबस्य को कोड जपन्य हुना.पहां वह मधुव है। "गोत्र कर्म के परिवर्तन का वह कितना स्पष्ट वर्णन है" (विश्वभरवासनी गार्गीवका "गोत्र कर्म क्या है।" __ स, अनमिन १० १९, अंक ३९, १०.") A भोग भूमि और कर्म भूमि के जरिये गौत्र का उदयपरिवर्तन पाया जाता है। "इस यथार्थ घटना से ही सिद्धारेकि मोम का कम; संतानो में बदल जाता है।" (पृ० २६०) : ____B "संतानक्रम से गोत्र का उदय बदल जाता?" (३३८): C "हमारी समझ में उनके (अंतर दीपज मनुष्य के) भोग भूमि के समान उस मोत्र का उदय होना चाहिये। : (gram) (प्र. शीतलप्रसादजी के लेख, मैनमित्र मंक १६, २१, २०) १७ A तीर्थकर भगवान का औदारिक शरीर उसी ही भव में बदल कर परमौदारिक बन जाता है वैसे गोत्रकर्म का भी परित तन समझना चाहिये। Bाज कल के ८ करोड़ मुसलमान ये असल में उच्च गोत्र की संतान है, इनमें जो माचार से इख बनेगा पर जाना पोली बनेन वगैरह। . .
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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