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________________ [5] ( रवीन्द्रनाथ जैन प्रायतीथं को " गोत्र कर्म " केवा, जैनमित्र व०४० अडू० २७ पृ० ४४० ) १८ इस प्रकार इस लेखसे यह अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है। कि श्रार्यखंड के मनुष्य उच्च और नीच दोनों प्रकार के होते हैं । शूद्र हीन वृत्ति के कारण व म्लेच्छ क्रूर वृत्ति के कारण नीच गोश्री, बाकी वैश्य, क्षत्रिय ब्राह्मण और साधु स्वाभिमानपूर्ण वृत्ति के कारण उच्च गोत्री माने जाते हैं. और पहली वृत्ति को छोडकर यदि कोई मनुष्य या जाति दूसरी वृत्ति को स्वीकार कर लेता है तो उसके गोत्र का परिवर्तन भी हो जाता है, जैसे भोग भूमि की स्वाभिमानपूर्ण वृत्ति को छोड़कर यदि आर्यखंड के मनुष्यों ने दीन वृत्ति और क्रूरवृत्ति को अपनाया तो वे क्रमशः शुद्र व म्लेच्छ बनकर नीच गोत्री कहलाने लगे । इसी प्रकार यदि ये लोग अपनी दीन वृत्ति अथवा क्रूर वृत्ति को छोड़कर स्वाभिमानपूर्ण वृत्ति को स्वीकार कर ले तो फिर ये उच्च गोत्री हो सकते हैं । यह परिवर्तन कुछ कुछ श्राज हो भी रहा है तथा आगम में भी बतलाया है कि छठे काल में सभी मनुष्यों के नीच गोत्री हो जाने पर भी उत्सर्पिणी के तृतीय काल की आदि में उन्हीं की संतान उच्च गोत्री तीर्थकर आदि महापुरुष उत्पन्न होंगे । [+ (पंडित वंशीधरजी व्याकरणाचार्य का "मनुष्यों में उच्चता नीचता क्यों ?" ! लेख, भनेकांत व० ३ कि० १ पृ० ५५ ) दिगम्बर--शूद्र जिनेन्द्र की पूजा करे ? जैन -- इसके लिये तो दिगम्बर आचार्यों ने भी श्राज्ञा दे दी | जैसा कि - १ अपवित्रो पवित्रो वा० (देव गुरु शास्त्र पुजा पाठ ) २-विद्याधर तीर्थकर की पूजा करके बैठे है ( ३ ) इन में मातंग जाति के ये हैं (१४) हरे वमवाले मातंग (१५) मुद
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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