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________________ ३८ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन धनार्जन के साधन बताये गये हैं । होता है कि आज से २००० कृषि और पशुपालन ही था । जैन ग्रन्थों के अनुशीलन से स्पष्ट वर्ष पहले आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि कृषि मानव जीवन का आधार है । इससे मनुष्यों तथा पशुओं के लिए भोजन तथा उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है । इसी कारण प्राचीनकाल से ही कृषि का उत्पादन में सर्वाधिक महत्त्व रहा है । प्राचीन जैन साहित्य में भी कृषि को आर्थिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है | अहिंसा प्रधान जैन धर्म में कृषि कर्म निन्द्य नहीं है । खेती करने वाले श्रेष्ठ ही माने जाते थे । जैन श्रावक संकल्पीहिंसा और अनर्थीहंसा को त्यागते हुए, जीविकोपार्जन कर सकते थे । जैन ग्रन्थों में अनेक गाथापतियों का वर्णन है जो कृषि कर्म करते थे और समाज में उनको उचित सम्मान मिलता था । आनन्द गाथापति, महावीर के मुख्य श्रावकों में था । उसके पास ५०० हल -प्रमाण भूमि थी और वह कृषि करवाता था । भरत चक्रवर्ती का गाथापति रत्न कृषि कर्म करवाता था । बृहत्कल्पभाष्य में कृषि को जीवनदायिनी कहा गया है । कृषि की वृद्धि के लिए हल देवता की पूजा की जाती थी । उसके सम्मान में सीतायज्ञ नामक उत्सव मनाया जाता था ।" सोमदेवसूरि के अनुसार वार्ता अर्थात् कृषि और व्यापार आदि का युक्तिपूर्वक प्रयोग करने वाला समस्त जनता को सुखी बनाता है तथा स्वयं भी भौतिक सुख प्राप्त करता है । बौद्धपरम्परा की जातककथा के अनुसार राजा शुद्धोधन भी "हल कर्षणोत्सव" बड़े धूमधाम से मनाते थे । सारा नगर आकर्षक ढंग से सजाया १. सुविद्यया सुसेवाभिः शौर्येण कृषिभिस्तथा कौसीद वृद्धया पाण्येण कला भिरक प्रतिग्रहैः यथा कथा चापि वृत्या धनवान् स्यात्तथा चरेत् ।” शुक्रनीति १ / १८१. २. स्थानांग ५ / ७९ । ३. उपासकदशांग १ /२८ । ४. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति २ / २२ । ५. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४ / गाथा ३६४७ । ६. आनन्द कौसल्यायन, जातक कथा, भाग १ /२०७ ।
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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