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________________ तृतीय अध्याय : ३९ जाता था । राजा का हल स्वर्ण-जटित होता था। तूर्यध्वनि के साथ राजा भूकर्षण आरम्भ करता था। इसके साथ ही अमात्य और पुरवासी भी अपना हल पकड़ते और स्त्रियाँ मंगलगान करती थीं।' ___हिन्दू परम्परा में कृषि का महत्त्व बताते हुए पराशर ने कहा है कि कृषि के अतिरिक्त न तो कोई धर्म है और न कोई लाभ और न कोई सुख । कृषि-भूमि आगमों के रचनाकाल में कृषि के लिये पर्याप्त भूमि थी। आज की भाँति उत्तम कृषि हेतु भूमि की गुणवत्ता का ज्ञान आवश्यक माना जाता था । उत्पादन की दृष्टि से भूमि को दो भागों में विभक्त किया गया था उद्धात उपजाऊ अर्थात् काली भूमि, अनुद्धत् अर्थात् पथरीली अथवा ऊसर भूमि। काली भूमि वाला क्षेत्र उत्तम माना जाता था। यह भूमि नरम होती थी और हल आदि से सरलता से खोदी जा सकती थी। काली भूमि कृषि कार्य हेतु उत्तम मानी जाती थी क्योंकि वह वर्षा होने पर पानी को सोख लेती थी। बृहत्कल्पभाष्य में उल्लिखित है कि पथरीली भूमि में हल चलाना दुष्कर होता है इसलिये उसमें उपज अच्छी नहीं हो सकतो।" गाँव और नगर की जिस भूमि को हल से जोता जाता था और जहाँ यव आदि धान्य उत्पन्न होता था, उसे खेत या क्षेत्र कहते थे । पाणिनि ने भी खेती को भूमि जो अलग-अलग खण्डों में विभक्त रहती थी उस क्षेत्र को खेत कहा है। खेत घरों से अधिक दूर नहीं होते थे ।' १. “युक्तितः प्रवर्तयन् वार्ता सर्वमपि जीवलोकमभिनन्दयति लभते च सर्वानपि कामान्" । सोमदेव सूरि-नीतिवाक्यामृत ५/५२ २. पराशरस्मृति ५/१८४-१८५ ३. बृहत्कल्पभाष्य भाग ५/ गाथा ४८९ ४. वुठे वि दोण मेहे, न कण्हभोमाउ लोट्टए। गहण-धरणासमत्थे इय देयम छित्तिकारिम्मि । बृहद्कल्पभाष्य भाग १/ गाथा ३३८ ५. खलिए पत्यरसीया, मिलिए मिस्साणि धन्नवावणया । वही भाग १/गाथा२९७ ६. "क्षीयते इति क्षेत्र ग्राम नगर यवादिस्यानि अत्रोत्पद्यन्ते" उत्तराध्ययनचूणि गाथा १८७ ७. अष्टाध्यायी ५/२/१ ८. निशीथचूणि भाग २/गाथा ८९३
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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