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________________ तृतीय अध्याय : ३७ को मान्य नहीं थे । जैसे जुआ खेलना, सेंध लगाना, ( चोरी करना), शहगीरों को लूटना, मायाजाल करना ।' महात्मा बुद्ध ने भी जीविकोपार्जन के साधनों की शुद्धता को आवश्यक माना है । अंगुत्तरनिकाय के अनुसार पांच व्यापार उपासक के लिये अकरणीय थे - ( १ ) सत्थवणिज्जा ( शस्त्रों का व्यापार), (२) सत्ववणिज्जा ( प्राणियों का व्यापार), (३) मंसवणिज्जा ( मांस का व्यापार ), (४) मज्जवणिज्जा ( मद्य का व्यापार ), (५) विस वणिज्जा ( विष का व्यापार )± । जातक में ऐसे दस व्यवसायों का उल्लेख हुआ है जो विपत्ति के समय ब्राह्मण कर सकते थे, जैसे चिकित्सा, सेवा, गाड़ी हाँकना, पथ प्रदर्शक बनना और राजा की नौकरी करना । ३ मनुस्मृति में भी विद्या, शिल्प, भृति, सेवा, गोरक्षा, व्यापार, पशुपालन, चिकित्सा, भिक्षा तथा ब्याज, धनार्जन के साधन बताये गये हैं । याज्ञवल्क्यस्मृति में भी आपत्ति - काल में ब्राह्मण की आजीविका के लिये कृषि, शिल्प, भृत्ति, अध्यापन, ब्याज पर धन देना, भाड़े पर गाड़ी चलाना, पर्वत से तृण (लकड़ी) इकट्ठी करके आजीविका उपार्जन करना, राजा की सेवा करना, राजा से याचना तथा भिक्षावृत्ति का उल्लेख है ।" याज्ञवल्क्य ने वैश्य के लिये ब्याज, कृषि, वाणिज्य और पशुपालन कर्म बताये हैं । शुक्रनीति में पठन-पाठन करके धनार्जन करना, राजा की सेवा करना, सेना में प्रविष्ट होना, कृषि करना, ऋण देना, शिल्प और व्यवसाय करना, भिक्षा मांगना आदि १. दिसिगमणं होइ मित्तकरणं च । णरवर-सेवा कुसलतणं च माणव्पमाणेसुं धाउवाओ मंतं च देवया राहणं च केसि च सायर-तरणं तह रोहणम्मि खणणं वणिज्जं णाणाविचकम्मं, विज्जा, सिप्पाइँ च । - कुवलयमालाकहा, पृ० ५७. २. अंगुत्तरनिकाय, भाग २ पृ० ४०१ ३. ब्राह्मण जातक - आनन्द कौसल्यायन, जातक कथा, भाग ४ पृ० ५६९ । ४. “विद्या शिल्पं भृतिः सेवा गोरक्षयं विपणिः कृषिः धृतिभैक्ष्यं कुसीदं च दश जीवनहेतवः " मनुस्मृति १० / ११६. ५. " कृषि, शिल्पं, भृति, विद्या कुशीदं शकटं गिरिः सेवानूपं नृपो भैक्ष्यापत्ती जीवनानि च । " - याज्ञवल्क्यस्मृति प्रायश्चित्ताध्याय सूत्र ४२ ६. वही, आचाराध्यायः सूत्र ५३.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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