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________________ द्वितीय अध्याय : २३ प्रति कठोर व्यवहार का भी उदाहरण मिलता है। बृहत्कल्पभाष्य के दृष्टान्त से ज्ञात होता है कि किसी एक वणिक् ने अपनी वृद्धा दासी को लकड़ी लाने हेतु जंगल भेजा, दोपहर को जब वह बिना लकड़ी लिए लौटी तो उसके स्वामी ने उसे पीटा और भूखी प्यासी दासी को पुनः लकड़ी लाने के लिए भेज दिया।' सूत्रकृतांग से ज्ञात होता है कि दास त्रस्त होकर घर से पलायित भी हो जाया करते थे। निशोथणि से सूचना मिलती है कि कुछ स्वामी, दासियों का उपभोग भी कर लेते थे । कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार अगर दासी को स्वामो से सन्तान हो जाती थी, तो वह दासता से मुक्त हो जाती थी। अगर दास अपना मूल्य चुका दे, तो भी उसे दासता से मुक्ति मिल जाती थी।५ कई बार स्वामी दास के कार्य से प्रसन्न होकर उसे दासता से मुक्त कर देते थे। राजा श्रेणिक ने पुत्र-जन्म का सुखद समाचार देने वाली दासी को दासता से मुक्त कर दिया था। इसी प्रकार व्यवहारभाष्य से भी ज्ञात होता है कि एक कुटुम्बी ने अपनी दासी की सेवाओं से प्रसन्न होकर उसका मस्तक धोकर उसे दासता से मुक्त कर दिया था। शिल्पी प्राचीन जैन ग्रंथों से पता चलता है कि अपने शिल्प में सिद्धहस्त शिल्पियों का बाहुल्य था । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में शिल्प जानने वाली १८ श्रेणियों का वर्णन है। प्रज्ञापनासूत्र में भी विभिन्न शिल्पियों का उल्लेख हुआ है-दोस्सिया (दूषयक), सौत्तिया (सौत्रिक), कप्पासिया (कार्पासिक) सुत्तवेयलिया (सूत्रवैतालिक), (भंडवेयलिया (भाण्डवैतालिक), कोलीलया (कौलालिक), गरदावणिया (नरवाहमिक), तुण्णागा (रफूगर), तंतुवाया १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २/१२०५. २. सूत्रकृतांग, भाग २/२/७१०. ३. निशीथचूणि, भाग ४/५/७८. ४. कौटिलीय अर्थशास्त्र, ३/१३/६५. ५. वही. ६. मत्थयधोयाओ करेइ, पुत्ताणु प्रत्तियं वित्ति कप्पेइ, कप्पेत्ता पडिविस तअ, ज्ञाताधर्मकथांग, १/७५. ७. व्यवहारभाष्य, भाग ६/२०८. ८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ३/१० प्रज्ञापना, १/१०५, १०६. ९. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ३/१०.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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