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________________ २४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन (जुलाहे), पहगारा (पटकार), देयड़ा (चमड़े की मशक बनाने वाले), वरणा (रस्सी बनाने वाले), छब्बिया (चटाई बनाने वाले), कट्ठपाउयारो (लकडी की पादुका बनाने वाले), छत्तारा (छाता बनाने वाले), बज्झारा वाहन बनाने वाले), लेप्पारा (लिपाई-पुताई करने वाले), चित्तारा (चित्रकार), संखारा (शंखकार), दंतारा (दंतकार), भंडारा (बर्तन बनाने वाले), सेलयारा (पाषाण पर काम करने वाले), कोडियारा (कौड़ियों की माला बनाने वाले)।' ___इनके अतिरिक्त औपपातिक में नट, नर्तक, रस्सी पर खेल करने वाले बाजीगर, मल्लयुद्ध करने वाले, मुष्टि-युद्ध करने वाले, विदूषक, भाँड, कथा वाचक, रास गायक आदि पेशेवर कलाकारों का भी उल्लेख हुआ है जो लोगों का मनोरंजन करके अपनी आजीविका अर्जन करते थे। श्रम विभाजन . एक ही व्यक्ति सभी कार्य कुशलता से नहीं कर सकता। अतः प्राचीनकाल से ही श्रम-विभाजन को महत्त्व दिया गया था । जैन परम्परा में श्रम विभाजन का आधार कर्म था जबकि हिन्दू परंपरा में श्रम विभाजन का आधार जन्म था। एक ही कार्य को बार-बार करते रहने से उसमें दक्षता आ जाती है। नंदोसूत्र में प्रसंगवश बताया गया है कि केवल सोने का ही काम करने वाला स्वर्णकार अपने व्यवसाय में इतना कुशल हो जाता है कि अंधकार होने पर भी स्पर्शमात्र से स्वर्ण और चाँदी का अन्तर बता सकता है। वैसे हो कुम्हार प्रतिदिन के अभ्यास से मिट्टी का उतना ही बड़ा पिण्ड उठाता है जितना भाण्ड विशेष के निर्माण के लिए अपेक्षित होता है । बृहत्कल्पभाष्य में बताया गया है कि मोटा वस्त्र बनाने वाला जुलाहा बारम्बार अभ्यास के कारण सुन्दर पट्ट वस्त्र बनाने लगता है। विशेष शिल्पों अथवा व्यवसायों में लगे हुए लोगों के अलग १. प्रज्ञापना, १/१०५, १०६. २. औपपातिक, १/२. ३. उतराध्ययन, २५/३३; पउमचरियं, २/१०३, ११५, ११७. ४. कौटिलीय अर्थशास्त्र, १/३/१; मनुस्मृति, १/८९,९०. ५. नंदीसूत्र, सूत्र ५३. ६. वही, सूत्र ७७. ७. बृहत्कल्पभाष्य, भाग १/२३१.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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