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________________ २२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन निशीथचूर्णि में दासों के छः भेद बताये गये हैं-' गव्वा (जन्मजात दास) कीता (क्रीत किये हुए दास) अनया (ऋण न चुका सकने के कारण बनाये गये दास) सवरहा (राजा द्वारा किसी विशेष अपराध के लिए दण्ड स्वरूप बनाए गए दास) णिरुद्ध (ऐसे दास जो युद्ध में पराजित बन्दी थे) दुभिक्खा (ऐसे दास जो दुर्भिक्ष से संत्रस्त होकर बन गये थे)। कौटिलीय अर्थशास्त्र में कई प्रकार के दासों का उल्लेख हैध्वजाहुत (युद्ध में बन्दी) आत्मविक्रयी (अपने आप को बेचने वाले) उदरदास (दासी से उत्पन्न) अहितिक (ऋण के कारण दास वृति अपनाने वाले) दण्डप्राणित (राज दण्ड के कारण दासता स्वीकार करने वाले)। मनुस्मृति में ६ प्रकार के दासों का उल्लेख हुआ हैध्वजाहतो (युद्ध में जीता हुआ) भतदासो (भोजन के (भोजन के लिए दास वृत्ति अपनाने वाला) क्रीत (क्रीत) दत्रिमौ (उपहार में प्राप्त) पैत्रिको (जन्मजात) और दण्ड दास (दण्डित होकर बना दास)३ दासों के उपरिलिखित वर्गीकरण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दासकुल में जन्म, युद्ध में पराजय, दण्ड, धन का अभाव तथा दुर्भिक्ष दासता के मूल कारण थे। दास चूकि निजी सम्पत्ति थे इसलिए इनका विक्रय, उपहार में देना तथा गिरवी रखना शास्त्र मान्य था। दासों को किसी प्रकार का वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं था। घर में उनके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार किया जाता था, पर कभी-कभी दासों के १. गब्भे कीते अणए, दुभिक्खे सावराहरूद्ध वा-निशीथचूर्णि, भाग ३/३६७६ २. कौटिलीय अर्थशास्त्र, ३/१३/५५ ३. मनुस्मृति, ८/४१५
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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