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________________ द्वितीय अध्याय : २१ खेतिहर श्रमिक वसूदेवहिण्डी में वर्णित है कि प्रायः कृषक और उसका परिवार स्वयं ही मिल कर खेती करते थे ।' किन्तु बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि कुछ समर्थ कृषक, जिन्हें कुटुम्बिन कहा जाता था, अपनी खेती के लिये कर्मकरों, भागीदारों और दासों को नियुक्ति करते थे। दास-दासी सेवा के लिये श्रम करने वालों में दास-दासी का बड़ा महत्त्व था । जैनग्रथों में व्यक्तिगत सम्पत्ति में धनधान्य, क्षेत्र, वास्तू, सोना-चांदी, गृहोपयोगी उपकरणों आदि के साथ दास-दासी की भी गणना की गई है।३ व्यवहारभाष्य से ज्ञात होता है कि साधारण गृहस्थ भी दास रखते थे, जो खेती में सहयोग करते थे । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि गृह-कार्य हेतु भी दास-दासियाँ सुलभ थीं, जो घर में खाना बनाना, कूटना, पीसना, कुएँ से पानी लाना और स्वामी की सेवा करना आदि सभी कार्य करती थीं।" राजपरिवारों और सम्पन्न परिवारों में शिशुओं के लालन-पालन हेतु धात्रियाँ नियुक्त की जाती थीं। आचारांग में पांच प्रकार की धात्रियों का उल्लेख है। यथा-क्षीरधात्री (दूध पिलाने वाली), मण्डनधात्री (वस्त्राभूषित करने वाली), मज्जनधात्री (स्नान कराने वाली), अंकधात्री (गोद लेने वाली), क्रीडापनधात्री (खेल खिलाने वाली)। जैन साहित्य में दास-दासियों को विदेशों से मंगाये जाने का भी उल्लेख है। औपपातिक में उल्लेख है कि वे अपने देश को वेशभूषा में रहते थे और भारतीय भाषा को न जानने के कारण संकेतों के माध्यम से बातें करते थे। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति से ज्ञात होता है कि भरतचक्रवर्ती के अन्तःपुर की देखभाल विदेशों से आई हुई दासियाँ करती थों ।' १, वसुदेवहिण्डो, भाग १, पृ० ३०. २. वृहत्कल्पभाष्य, भाग २/९८८. ३. प्रश्नव्याकरण १०/३ : बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३/२२०३. ४. व्यवहारभाष्य, भाग ६/२०८. ५. ज्ञाताधर्मकथांग २/२५, ७/२९ : सूत्रकृतांग १/४/५७७. ६. आचारांग २/१५/१७६; ज्ञाताधर्मकथांग, १/८२. ७. औपपातिक, सूत्र ५५ : ज्ञाताधर्मकथांग, १/८२. ८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, २/७.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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