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________________ ६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन पूर्ण हैं कि वे आगम साहित्य में स्वतंत्र रूप से प्रतिष्ठित हो गई हैं, जैसे पिंडनियुक्ति और ओघनियुिक्त ।' आगमों और निर्यक्तियों को स्पष्ट करने के लिये जिनभद्रगणि और संघदासगणि आदि ने प्राकृत गाथाओं में ही (१) आवश्यक, (२) दशवैकालिक, (३) उत्तराध्ययन, (४) बृहत्कल्प, (५) पंचकल्प, (६) व्यवहार, (७) निशीथ, (८) जीतकल्प, (९) ओघनियुक्ति, (१०) पिण्डनियुक्ति पर भाष्य लिखे। इनका रचनाकाल ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के लगभग माना जाता है। ___ आगम ग्रंथों की गद्यात्मक विशेष व्याख्या चुणि कही जाती है । चूर्णियों की भाषा संस्कृत मिश्रित प्राकृत है। (१) आचारांग, (२) सूत्रकृतांग, (३) भगवती (४) जीवाभिगम, (५) निशीथ, (३) महानिशीथ, (७) व्यवहार, (८) दशाश्रुतस्कन्ध, (९) बृहत्कल्प, (१०) पंचकल्प, (११) ओघनियुक्ति, (१२) जीतकल्प, (१३) उत्तराध्ययन, (१४) आवश्यक (१५) दशवैकालिक, (१६) नंदी, (१७) अनुयोगद्वार और (१८) जम्बूद्वोपप्रज्ञप्ति पर चूर्णियाँ लिखी गई हैं। इनका रचनाकाल सातवीं शताब्दी के लगभग माना जाता है। चूर्णिकारों में जिनदासगणि प्रमुख हैं। परवर्ती काल में हरिभद्रसूरि, अभयदेव, मलयगिरि आदि टीकाकारों ने आगमों पर संस्कृत भाषा में टीकाओं की रचना की । आगमों की प्राचीन टीकाओं का रचनाकाल आठवीं शताब्दी से दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी तक माना जाता है । पुराण तथा कथा साहित्य समय-समय पर धर्मदेशना और लोकरंजन के लिये धार्मिक और पौराणिक आख्यानों पर स्वतंत्र ग्रंथ लिखे गये । पुराणों में जिनसेन का आदिपुराण, गुणभद्र का उत्तरपुराण और रविसेन का पद्मपुराण एवं कथाओं में संघदासगणि की वसुदेवहिण्डी, विमलसूरि का पउमचरियं, उद्योतनसरि की कुवलयमालाकहा और हरिभद्रसूरि की समराइच्चकहा तथा धूर्ताख्यान और सोमदेव का यशस्तिलक चम्पू महत्त्वपूर्ण है । इनमें १. मेहता, मोहनलाल : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास-२, पृ० ६८. २. वही, पृ० १२९. ३. वही, पृ० २९०. ४. वही, पृ० ३४३.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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