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________________ प्रथम अध्याय: ५ में आगमों को स्मृति के आधार पर मौखिक रूप से व्यवस्थित किया गया । स्कन्दिल और नागार्जुन परस्पर कभी नहीं मिल सके सम्भवतः इसी कारण द्वितीय और तृतीय वाचनाओं के संकलित साहित्य में पाठान्तर और वाचना-भेद है । अनन्तर देवद्विगणि ने पाठान्तर और वाचना-भेद आदि का समन्वय करके उन्हें लिपिबद्ध कर दिया । काल प्रकृति और विस्मृति जन्य दोषों को दूर करके लिपिबद्ध करने से आगमों का मौलिक स्वरूप बहुत कुछ सुरक्षित हो गया । दृष्टिवाद तब भी उपलब्ध न हो सकने के कारण लुप्त घोषित कर दिया गया । पाश्चात्य विद्वान् हरमन जैकोबी के विचार में जैनागमों का रचनाकाल जो भी हो पर उनमें जिन तथ्यों का संग्रह है, वे प्राचीन परम्परा के हैं और इस प्राचीन परम्परा का काल ईस्वी पूर्व तीसरी-चौथी शताब्दी से लेकर ईसा की तीसरी-चौथी के मध्यकाल तक माना जाता है । इस साहित्य में प्राचीनतम जैन परम्परायें, अनुश्रुतियां, लोककथायें, रीतिरिवाज, धर्मोपदेश को पद्धतियां, आचारविचार, संयम पालन की विधियां, दर्शन, गणित, ज्योतिष, खगोल- भूगोल, इतिहास, राजनीति, समाज आदि विषयों का वर्णन है जिसके अध्ययन से तत्कालीन आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक अवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है । आगमों का व्याख्या साहित्य आगमों की भाषा और अर्थ स्पष्ट करने के लिये विभिन्न आचार्यों ने विपुल साहित्य का सृजन किया । आगामों के इस व्याख्यात्मक साहित्य का प्रारम्भ नियुक्ति से होता है । भाषा, शैली व विषय की दृष्टि से व्याख्या साहित्य में ये प्राचीनतम है । इनका रचनाकाल ईसा की प्रथम द्वितीय शताब्दी के लगभग माना जाता है । ये प्राकृत पद्यों में लिखी गई हैं और संक्षेप में विषय का प्रतिपादन करती हैं । भद्रबाहु ने (१) आवश्यक, (२) दशवैकालिक, (६) उत्तराध्ययन, (४) आचारांग, (५) सूत्रकृतांग, (६) दशाश्रुतस्कन्ध, (७) बृहत्कल्प, (८) व्यवहार, (९) सूर्यप्रज्ञप्ति और (१०) ऋषिभाषित आगम ग्रन्थों पर नियुक्तियाँ लिखीं । इनमें अन्तिम दो नियुक्तियों के अतिरिक्त सभी उपलब्ध हैं । आगमों के कुछ प्रकरणों की नियुक्तियाँ मुनियों के आचार की दृष्टि इतनी महत्व १. विजयमुनि मुनिसमदर्शी, आगम और व्याख्या साहित्य, पृ० १४. २. जैकोबी, हरमन, सेक्रेड बुक्स आफ द ईस्ट, खण्ड २२, पृ० ३४.
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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