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________________ प्रथम अध्याय : ७ राजा, मंत्री, सेनापति, श्रेष्ठी, सार्थवाह तथा जनसाधारण के जीवन का कुशलता से चित्रण किया गया है। इनका रचना काल सातवीं से दसवीं शताब्दी तक माना जाता है। यद्यपि प्राचीन जैन आगम साहित्य एवं आगम व्याख्या साहित्य में देश और काल का स्पष्ट और निश्चित संकेत न होने से तथा प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण और कहीं-कहीं दोषपूर्ण वर्णन होने के कारण उनकी विषयवस्तु को ऐतिहासिक धरातल पर खरा नहीं माना जा सकता तथापि इनसे परम्परागत और तत्कालीन ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक चित्र के मूल्यांकन में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। अतः उनकी उपयोगिता को पूर्णतः अस्वीकार भी नहीं किया जा सकता है। इतिहास ग्रन्थ न होकर भी इनमें देश और कालगत इतिहास संचित हैं। यही इनके अध्ययन की मूल्यवत्ता है।
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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