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________________ पंचम अध्याय : १२५ साधनों से और पैदल यात्रा की जाती थी। इन सड़कों की चौड़ाई के सम्बन्ध में जैन साहित्य में कोई उल्लेख नहीं है । किन्तु कौटिलीय अर्थशास्त्र में उपलब्ध तथ्यों के अनुसार सड़कों की चौड़ाई भिन्न-भिन्न होती थी यथा राजमार्ग, द्रोणमुख, राष्ट्र तथा व्यापारिक मंडियों को जाने वाले मार्ग आठ दण्ड चौड़े होते थे । जलाशयों तथा जंगलों को जाने वाले मार्ग चार दण्ड चौड़े होते थे। हाथियों के चलने तथा खेतों को जाने वाले मार्ग दो दण्ड चौड़े होते थे, रथों के लिये मार्ग पांच रत्न, पशुओं के लिये चार रत्न तथा मनुष्य और छोटे पशुओं के लिये दो रत्न चौड़े मार्ग निर्मित किये जाते थे। (२ रत्न १ गज के बराबर इकाई थो) । औपपातिक से ज्ञात होता है कि नगरों और गाँवों के मार्गों की सावधानी से देखभाल की जाती थी। धूल-मिट्टी को दबाने के लिये प्रतिदिन जल का छिड़काव किया जाता था। इससे प्रतीत होता है कि सड़कें कच्ची होती थीं। उत्सवों और विशेष अवसरों पर सड़कों को तोरणों और पताकाओं से सजाया जाता था और सुगन्धित पदार्थ डालकर उन्हें सुवासित किया जाता था। आवश्यकता पड़ने पर सड़कों का पुनरुद्धार किया जाता था। मार्ग को अवरुद्ध करने वाले वृक्ष काट दिये जाते थे, ऊँचो-नीचो भूमि को समतल किया जाता था। वाल्मीकि रामायण में भी उल्लेख है कि राम को अयोध्या वापस लाने के लिये सेना सहित प्रस्थान करते समय भरत ने शिल्पियों और वनचरों को आदेश दिया कि आगे जाकर विषम वन-प्रदेश में सेना के लिये समतल मार्ग का निर्माण करें। बौद्ध ग्रन्थों में भी सड़कों को मरम्मत के उदाहरण प्राप्त होते हैं । छदन्तजातक से ज्ञात होता है कि एक बार मार्ग को समतल तथा सुरक्षित करने के लिये बोधिसत्व ने दूब, तुलसी तथा बाँस के घने वनों को काटा १. राजामार्गद्रो गमुखस्थानीयराष्ट्र विवीतपथाः सयोनीयव्यूहशमशानंग्रामपथाश्वाष्ट दण्डः, चतुदण्डो हस्तिक्षेत्रपथ : पञ्चारत्नयो रथपथश्चत्वारः पशुपथः द्वौ शूद्रपशुमनुष्यपथः । कौटिलीय अर्थशास्त्र २/४/२२ २. औपपातिक सूत्र ४५ ३. बृहत्कल्पभाष्य, भाग १, गाथा २६० ४. वाल्मीकि रामायण २/७९/१३
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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