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________________ १२४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन जैनसाहित्य में जैन साधओं के विहार योग्य २५/ आर्य देशों का उल्लेख है-मगध, अंग, वंग, कलिङ्ग, काशी, कोशल, कुरु, कुशावर्त (सुल्तानपुर), पंचाल (रुहेलखण्ड), जांगलदेश, सौराष्ट्र, विदेह, वत्स, संडिब्बा (संडील), मलया (हजारीबाग प्रान्त), वच्छ ( मत्स्य ) अच्छा (बिदिलपुर) दसन्ना (दशाण), चेदि, सिन्धु, सौवीर, शूरसेन, बंग, परिवर्त, कुणाल, लाढ़ और कैकयार्ध ।' ये स्थान जल और स्थल मार्गों द्वारा परस्पर जुड़े हुये थे। जैन साहित्य में मुख्यतः स्थल, जल और प्रसंगतः वायु मार्गो का उल्लेख हुआ है। स्थलमार्ग प्राचीनकालीन नगर और गांव दोनों ही न्यूनाधिक यातायातसाधन सम्पन्न थे। नगरों में व्यवस्थित और प्रशस्त मार्ग निर्मित थे । भगवतीसूत्र में साधारण और कम यातायात वाले मार्ग को “पथ" और अधिक यातायात वाले विशाल मार्ग को महापथ कहा गया है। जहां तीन दिशाओं से सड़कें आकर मिलती थीं उसे "शृगाटक" (तिराहा), जहां चार दिशाओं से सड़कें आकर मिलती थीं उसे “चतुष्क" (चौराहा) और जहाँ ६ ओर से सड़कें आकर मिलती थीं उसे "प्रवह' कहा जाता था । ग्रामों को नगरों से जोड़ने वाले सम्पर्क मार्गों पर रथ, गाड़ी आदि १. १. रायगिहमगह, २. चंपा अंग, ३. तह तामलित्ति वंगा, ४, कंचणपुरंक लिंगा, ५ वाणारसिं चेव कासी य ६. साकेत कोसला, ७. गयपुरं च कुरु, ८. सोरियं कुसट्टा य, ९. केपिल्लं पंचाला, १०. अहिछत्ता जंगला चेव, ११. बारवई य सुरट्ठा, १२. विदेह मिहिला य, १३.व च्छ कोसम्बी, १४. नंदिपुरं संडिभा, १५. भद्धिलपुरमेव मलया य, १६. वेराड वच्छ, १७. वरणा अच्छा, १८. तह मत्तियावइ दसन्ना, ९९. सुतीवई य चेदी, २०. वीयभयं सिंधु सोवीरा, २१, महुरा य सूरसेणा, २२. पावा भंगी, २३. भास पुरिवट्टा २४. सावत्थी य कुणाला, २५. कोडीवरिसं लाढा य २६. सेयवियाकेगइअद्ध प्रज्ञापना ९/१०२, बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा ३२६३ २. भगवती २/५/९६ ३. “सिघाडगं तियं खलु, चउरच्छसमागमो चउक्कं तु । छग्हं रच्छाण, जहिं पत्रहो तं चच्चरं बिती । बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा २३००
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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