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________________ पंचम अध्याय : १११ उत्तम, मध्यम और निम्न । उत्तम तथा निम्न प्रकार के कम्बलों का मूल्य क्रमशः एक लाख रुवग व १८ रुवग था। मध्यम प्रकार के कम्बल का मूल्य उत्तम से कम और निम्न से अधिक होता था। बृहत्कल्पभाष्य के अनुसार 'कृत्रिकापण' में एक निष्क के मूल्य वाले बर्तन भी बेचे जाते थे।' दशवैकालिकण में उल्लेख है कि तीतर पक्षी एक कार्षापण में प्राप्त हो जाता था। उत्तराध्ययनचूणि में एक दमग ( भिक्षुक ) का विवरण है जो अपने प्रतिदिन के भोजन के लिये एक काकिणी व्यय करता था ।३ विज्ञापन कुवलयमालाकहा से ज्ञात होता है कि ग्राहकों को आकर्षित करने के लिये उन्हें भांति-भांति के प्रलोभन एवं आश्वासन दिये जाते थे। माल के सस्ते, सुन्दर और अच्छे होने का आश्वासन दिया जाता था, एक प्रकार से उन्हें माल की गारंटी दी जाती थी। कुमारगुप्त प्रथम के समय के मन्दसौर प्रस्तर अभिलेख से तन्तुवाय संघ के एक विज्ञापन की झलक मिलती है। इसमें रेशमी वस्त्र को विज्ञापित करते हुये कहा गया है कि एक रूप-यौवन सम्पन्न, सुवर्णहार धारण करने वाली नारी पान के बीड़े तथा पुष्पों से सज्जित होकर भी गुप्त स्थान पर अपने प्रियतम के पास तब तक नहीं आती जब तक वह रेशमी वस्त्र नहीं धारण कर लेती। बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि ज्योतिषियों से परामर्श लेकर और शुभ मुहूर्त देखकर, व्यापार आरम्भ किया जाता था। प्राचीन भारत के सार्थवाह __ व्यापार के लिये सार्थवाहों का अत्यधिक महत्त्व था असुरक्षित मार्गों की कठिनाइयों के कारण अकेले यात्रा करना सम्भव नहीं था, इसलिये लोग सार्थ बना कर चलते थे। मिलकर यात्रा करने वाले समूह को 'सार्थ' कहा जाता था और सार्थ का नेतृत्व करने वाला 'सार्थवाह' कहलाता १. बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, गाथा ४२१६ २. दशवैकालिकचूर्णि; पृ० ५८, वसुदेवहिण्डी, भाग १, पृ० ५७ ३. उत्तराध्ययनचूणि, पृ० १६१-१६२ ४. सूरि उद्योतन-कुवलयमालाकहा, पृ० १५३ ५. कुमारगुप्त प्रथम तथा बन्धुवर्मन का मन्दसौर अभिलेख पंक्ति १२ नारायण के० के०-प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह २, पृ० १२३ ६६. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ५, गाथा ५११४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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