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________________ चतुर्थ अध्याय : ९३ निर्माण होता था। भारत से विदेशों को चीनी का निर्यात भी कियाजाता था। भारतीय व्यापारी "कलिका द्वीप" में अन्य वस्तुओं के साथ चीनी भी लेकर गये थे। सिकन्दर के साथ भारत आये यूनानी यात्रियों ने अपने भारत के यात्रा-वृत्तान्तों में ऐसे पौधों का उल्लेख किया है जिससे मधु मक्खियों के बिना शहद उत्पन्न होता था । अनुमानतः इनका अभिप्राय गन्ने से ही था। चीनी-निर्माण की प्रक्रिया से यूनानी उस काल, तक अनभिज्ञ थे। ७-तेल-उद्योग जैन साहित्य के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि आज की ही भाँतिअलसी, एरण्ड, इंगुदी, सरसों, तिल आदि से तेल निकाला जाता था। इस क्रिया को 'जंतपीलण कम्म' ( यंत्रपीड़न कर्म ) कहा जाता था।" मुख्यरूप से खाने के अतिरिक्त तेलों का उपयोग औषधियों के रूप में भी होता था । विभिन्न प्रकार की औषधियों को मिश्रित कर तेल बनाये जाते थे । १०० औषधियों के साथ पकाये गये तैल को “शतपाक" कहा जाता था । शास्त्रकारों ने १०० बार पकाये जाने वाले तेल को भी शतपाक कहा है। इसी प्रकार सहस्र औषधियों में पकाये जाने वाले तेल को "सहस्रपाक' कहा जाता था। शतपाक और सहस्रपाक तेल बहुत मूल्यवान होते थे और जनसाधारण को सहज उपलब्ध नहीं थे। हंस को चीरकर उसका मल-सूत्र साफ करके उसके उदर में दवाइयाँ भरकर उसे तेलों में पकाया जाता था। इस प्रकार तैयार किये गये तेल को "हंसतेल" कहा जाता था। इसका उपयोग औषधि के रूप में किया जाता था । इसीप्रकार एक और तेल था जो मरु प्रदेश के पर्वतीय वृक्षों से प्राप्त किया जाता था उसे 'मरुतेल' कहा जाता था।' शतपाक और सहस्रपाक . १. बहस्स खंडस्स य गुलस्स य सक्कराए य मच्छेडियाए य __ ज्ञाताधर्मकथा १७/२२ २. बैजनाथपुरी, इण्डिया ऐज डिस्क्राइब्ड बाई ऐनशियंट ग्रीक राइटर्स, . पृष्ठ १०३ ३. बृहत्कल्पभाष्य भाग १ गाथा ५२४ ४. उपासकदशांग १/३८ ५. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ५ गाथा ६०३० ६. वही, भाग ५ गाथा ६०३१
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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