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________________ ९२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन गृह, पुष्करिणी, बावड़ी, स्तूप आदि बनाते थे ।' वास्तु उद्योग ने इतनी उन्नति कर ली थी कि वातानुकल गृहों का भी निर्माण होता था। मेगस्थनीज के अनुसार पाटलिपुत्र का राजमहल बहुत सुन्दर था। सूसा और एकबतना के राजमहल भी उसकी तुलना नहीं कर सकते थे । ६-खांड-उद्योग __ जैन साहित्य के उल्लेखों से ज्ञात होता है कि उस समय खांड़उद्योग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उद्योग था। गन्ने की खेती प्रचुर मात्रा में होती थी। अतः गुड़ और शक्कर का निर्माण आर्थिक जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग थे, गन्ने से गुड़, खांड़ और राब का निर्माण होता था। जहाँ गन्नों का संग्रह किया जाता था उसे "उच्छघर' अर्थात् इक्षुगृह कहा जाता था। दशपुर के इक्षुगृह में आचार्य ठहरते थे।" गुड़ बनाने का स्थान राजप्रश्नीय सूत्र में “इक्खुवाड़े" ( इक्षुगृह) कहा गया है। इक्षुगृह में गन्नों को कांट-छांटकर उन्हें पत्र-रहित किया जाता था और इक्षुयंत्र से पेर कर रस निकाला जाता था।६ इस यंत्र-विशेष को "इक्खुजत" कहा जाता था। राजप्रश्नोय में इक्षुगृह में आने वाले यात्रियों को रस पिलाने का उल्लेख है। रस को उबालकर गुड़ निर्मित किया जाता था। गुड़ आगन्तुकों में भी वितरित किया जाता था। गुड़ के अतिरिक्त खांड़, काल्पो ( मिश्री ), चीनी तथा चीनी से अनेक प्रकार की वस्तुओं का १. प्रश्नव्याकरण १/१४ २. बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३ गाथा २७१६ ३. बैजनाथपुरी, इण्डिया ऐज डिस्क्राइब्ड बाई ऐंशियंट ग्रीक राइटस, पृष्ठ १४४ ४. अनुयोगद्वार १/६६; बृहत्कल्पभाष्य, भाग ४ गाथा ३४६५ "फणिओ गुलो भण्णति छिड्डुगुड़ो खडहडो" निशीथणि भाग २ गाथा १५९३ “५. व्यवहारभाष्य ८/२४२; निशीथचूर्णि भाग ३ गाथा ४५३६ ६. राजप्रश्नीयसूत्र ४२ ७. प्रश्नव्याकरण २/१३ ८. राजप्रश्नीय १/२
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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