SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन तेलों के उल्लेख से स्पष्ट होता है उस युग में कि आयुर्वेद अत्यन्त उन्नत स्थिति में था। ८-लवण उद्योग लवण अर्थात् नमक का भोजन में सदा से महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। बृहत्कल्पभाष्य में उल्लेख है कि नमक और मिर्च-मसालों से संस्कारित किया हुआ भोजन स्वादिष्ट हो जाता है ।' दशवकालिक से ज्ञात होता है कि ऊसर भूमि की मिट्टी से नमक की प्राप्ति होती थी, समुद्र के पानी से भी नमक निकाला जाता था, इसी ग्रन्थ में सेंधा नमक, रोमा नमक ( चट्टान का नमक ) काला नमक, सफेद नमक तथा मिट्टी से प्राप्त नमक का उल्लेख है। कौटिलीय अर्थशास्त्र से भी नमक-उद्योग की पुष्टि होती है । "लवणाध्यक्ष" नामक राज्याधिकारी नमक व्यवहार का निरीक्षण करता था । ९-मद्य उद्योग ___ मद्यपान विलास की वस्तु थी जिसकी गणना उत्तम प्रकार के पेयों में की जाती थी। पर्यों और उत्सवों के अवसरों पर सामान्य जनता भी मद्यपान कर लेती थी। कई प्रकार के 'मद्य निर्मित किये जाते थे-यथा चन्द्रप्रभा, मणिशलाका, वरसीधु, वरवारुणी, पालनिर्याससार, पत्रनिर्याससार, पुष्पनिर्याससार आदि। इसी प्रकार सन्ध्या के समय तैयार होने वाली मधु, मेरक, जम्बूफल, दुग्ध, आति प्रसन्ना, तेल्लक, शतायु, खजूर सार, द्राक्षासव, कापिशायन, सुपवन आदि मदिराओं के भी उल्लेख मिलते हैं। कौटिलीय अर्थशास्त्र में मेदक, प्रसन्ना, आसव, अरिष्ट, मेरय और मधु का उल्लेख हुआ है। जिस स्थान पर मदिरा बनाई जाती थी, उसे "पाणागार" कहा जाता था । गुड़ निर्मित मदिरा को गौड़ी, व्रीहि १. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २ गाथां १६११, १६१३ २. सिंधवे लोणे रोमालोणे या आमये सामुद्दे पंसुखारे कालालोणे दशवकालिक ३/८ ३. कौटिलीय अर्थशास्त्र २।१२।३० ४. जीवाभिगम ३।२।२१ ५. कौटिलीय अर्थशास्त्र २।२५।४२ ६. पाणागारं जत्थ पाणियकम्मं तासुरा-मधु-सीधु-खडगं मच्छडियं मुछिया पाभित्तीणं पाणगाणि । निशीथचूणि भाग २ गाथा २५३४
SR No.022843
Book TitlePrachin Jain Sahitya Me Arthik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamal Jain
PublisherParshwanath Vidyashram Shodh Samsthan
Publication Year1988
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy