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________________ જેલ विजयप्रशस्तिसार । पधारे। यहां के राजा ने भी सूरिजी का बड़ा सत्कार किया 1 यहां " बैराट नगर-महिम नगर आदि नगरों में होते हुए और धर्मोपदेश देते हुए लाहौर से ६ कोश दूर' लुधियाना में पधारे। बह समाचार लाहौर में प्रसिद्ध होगया कि श्रीविजयसेन सूरिजी लोधिज्ञाना पधारे हैं, तब भीअकबर बादशाह के मंत्रियों का अधिपति 'शेख' का भाई 'फयजी' (जोकि दशहजार सेनाका सेनाधिपति था) वह और अनेक लोग गुरु महाराज के दर्शन करने को वहांपर जा. पहुंचे। यहां पर समस्त लोगों के सामने फयजी - सेनाधिपति के आग्रह: से गुरु महराज के शिष्य भीनन्दिविजय नाम के सुनि ने अष्टावधान साधन किए। इस चमत्कार को देख करके सब लोग, चकित होगए । इस चमत्कार से चमत्कृत होता हुआ शेख का भाई फ़यजी अकबर बादशाह के सामने जाकर कहने लगा " हे : राजेश्वर ! भीहीर विजयसूरि लाभपुर में पधारते हैं । अब थोड़ीही. दूर हैं । यह सूरिजी भी गुणों के एक मात्र भण्डारही हैं इनके शि स्य भी बड़ी २ कलाओं को जानने वाले हैं। इव महात्माओं में न न्दिविजय नाम के मुनि अद्भुत हैं । इस प्रकार की तारीफ को सुनतेही राजा मुनिजी के दर्शन क रने को उत्सुक हुवा । सूरीश्वर ने अपनी शिष्यमण्डली के साथ आते हुए ' पञ्चकोशी' बनको प्राप्त किया। जहां की राजा का महल था । यहाँ पहिले पण्डित सुरचंद्रगणिके शिष्य श्रीमानुचन्द्र नामके उपाध्यायको भीहीरविजयसूरिने राजा के साथ में धर्म गोष्टी के लिये बैठाया । इस पञ्चक्रोशी वनमें भानुचन्द्र उपाध्याय सामने आए । राजाने अपने नगर निवासियों के साथ हाथी, घोड़े, पयदल यदि सेना और अपने मंत्री वर्गको भी भेजकर सूरीश्वरका बहुतसत्कार किया। इस धूमधाम के साथ सूरिजीने लाहौर शहर के पान
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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