SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राठवा प्रकरण। ४७ कि “ हेस्वच्छात्मन् । भीमकबर बादशाह को मिलने के लिये तू जा । इस राजा की भूमि में स्थिति को फैलाते हुए हम . लोगों को उनकी आमा शुभ फल की देने वाली है । " इस बचनों को सुनतेही श्रीविजयसेनसूरि ने कहा ' जैसी पूज्य की प्रामा!'। बस ! मापने अकबर बादशाह के पास जाने का विचार निश्चय किया । और सं० १६४६ मार्गशिर्ष शुक्ल तृतीया को शुभ मुहूर्त में श्रीहीरविजयसूरि जी को नमस्कार करके मापने लाभपुर (लाहौर) के प्रति प्रमाण भी किया। मार्ग में चलते हुए पहिले आप पतन (पाटण ) पधारे । यहां पर भावक लोगों ने बड़ा उत्सव किया। यहां के सष मंदिरों के द. शन करके क्रमश देलवाड़ा आदि तीर्थों की पात्रा करते हुए 'शिवपुरी' पधारे । यहांपर 'सुरत्राण' नामक राजा रहता था । सू. रीश्वर का मागमन मुनकर राजा ने अपनी 'शिरोही' नगरी बहुत ही शुशोभित की । और बड़ी भक्ति के साथ दो कोश तक अगमानी करने गया । राजा ने सूरीश्वर का बड़े सरकार के साथ पुर प्रवेश करवाया। यहां पर कुछ दिन स्थिरता करके सूरि जी आगे बढ़े। क्रमशःविचरते हुए और भव्य जीवों को उपदेश देते हुए भीना. रदपुरी' (जोकि अपनी जन्म भूमि थी ) में पधारे । चाहे जैसे म. नुष्य हो और चाहे जैसा जन्म भूमि वाला ग्राम हो, जन्म भूमि में जाने से सबको मानंद होता है । क्योंकि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गा दपि गरीयसी' यह लोकोक्ति बार में प्रचलित है । सुरिजी को भी यहां आने से बहुत मानंद हुमा । यहाँपर सूरिजीने पूर्वावस्था के संम्बन्धि समूह के आग्रह से कुछ समय निवास किया । यहां के लोगों ने बहुत द्रव्य सरचा करके सूरिजी के उपदेश से शामन की प्रभाधना की। वहां बे विहार करके भाप मेदिनीपुर (मेडता)
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy