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________________ पाठवा प्रकरण । एक 'गंज' नामक शास्त्रापुर में निवास किया। इसके पश्चात् अष्टा वधानी को देखने की इच्छा से राजाने सुरीश्वर के शिष्यों को अपनी पास बुलाए । गुरु महाराज की आज्ञानुसार श्रीनन्दिविजयादि साधु राजा की राजसभा में गये । इस सभा श्रीनन्दिविजय मुनिने प्राश्चर्यकारी-अद्भुत अष्टावधान को साधन किये । इस चमत्कारी विद्या को देख करके सब लोग मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करन लगे, यहां तक कि स्वयं बादशाह भी अपने मुख कोम शेक सका। . इसके बाद ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी के दिन राजा ने बड़े उत्सव के. साथ श्रीसूरीश्वर को नगर प्रवेश करवाया । राजा ने हमार सूरी. श्वर को 'भबजाफजल' नामक प्रसिद्ध नियोमी के मकान में निवास करवाया। इसके बाद राजा ने भीसूरीश्वर को अपनी बैठक में बुलाने के लिये अपने मंत्रियों को भेजा । सूरीश्वर अपना गौरव और धर्म का गौरव समझ करके राजा के मकान में पधारे। राना ने बड़ी नम्रता के साथ श्रीरिजी से पूछा कि " हे गुरवः ! आपके शरीर में और मापके शिष्य मण्डल में अच्छी तरह कुशत. मंगल सुख शान्ति है ? हे महाराज ! श्रीहीरविजयसरि जी कौन देश में कौन नगर में विद्यमान है । वे भी सुख शान्ति से जगत् का उद्धार करने में कटिबद्ध हैं ? वे महात्मा जी वर्तमान कौन २ कार्य में प्राच है ? कृपाकर मुझे सब हाल सुनाइये। .. तदन्तर सूरिजी ने बड़े मधुर स्वरसे कहा:-हे राजन् ! प्रापके अनुभाव से भूवलय में रहते हुए हमें सब प्रकार से सुख शान्ति प्राप्त है। हे महानुभाव !इस जगत में भापके शासनकाल में स. मस्त प्रकार के भय नट हुए हैं। अतएव प्रापके प्रभाव से सबको शान्ति प्राप्त है। सूरि पुङ्गव, गुरुवर्य श्रीहीरविजयसूरीश्वर जी क.
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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