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________________ विजयप्रशस्तिसार । की गई । इस प्रकार इस मनोहर-म्य मंदिर में श्रीजिनेश्वरों की श्रीविजय सेनसूरीश्वरने प्रतिष्ठा की। आठवां प्रकरण । (अकबर बादशाह का श्रीशनंजयतीर्थ करमोचन पूर्वक फरमान पत्र देना । श्रीविजयसेनसूरि को बुलाना । श्रीविजयसेनसूरिका लाहौर प्रति गमनमार्गमें अनेक राजाओंसे सम्मानित होना और सुखशांति से लाहोर __पहुंचना । इत्यादि) अब श्रीबिजयसेनसूरि गन्धार बन्दर से बिहार करके अपने गुरु श्रीहीरविजयसूरि जी के पास आए। इन दोनों प्राचार्यों ने सं० १६४६ की साल का चातुर्मास राजधन्यपुर (राधनपुर) में किया। यहांपर एक दिन श्रीहीरविजयसूरि जी के पास लाहोर से अकबर बादशाह का पत्र माया । उसमें उन्हों ने यह लिख भेजा कि:-" अबसे इस तीर्थ का कर मेरे राज्य में कोई नहीं लेगा । इस प्रकार का मैने निश्चय किया है। अब आपका पवित्र शर्बुजयतार्थ आपको कर मोचन पूर्वक देने में आता है"। इस तरह लिखकर साथही साथ यह भी राजा ने लिखा कि-"माप मेरे ऊपर कृपा करके अपने पट्टधर को यहांपर भेजिये। क्योंकि जब मैंने पहिले आपके दर्शन किए तब से मैं पुण्य से पवित्र हुमा हूं । अब भाप छपा करके अपना कोई विद्वान् शिष्य मेरे पास भेजिये" इस पत्र को पढ़कर बड़े विचार पूर्वक आपने श्रीबिजयसेनसूरिजी से कहा
SR No.022726
Book TitleVijay Prashasti Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
PublisherJain Shasan
Publication Year1912
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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